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प्रथम अध्याय

15 सितम्बर 2024

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तुमसे बिछडा हूँ मैं किस ओर कहाँ जाऊँगा
किसके आँचल  में  उठी  पीर को छुपाऊँगा
तुमने  मरहम   की   जगह  घाव  खुरेदे  मेरे
दर्द इतना है  कि  बिन मौत  ही मर जाऊँगा

जिस्म की  राख  हवाओं  में  बिखर जायेगी
वक्त  बनकर  तेरी  आँखों  में ठहर जाऊँगा
मेरे कदमों  के  निशाँ  ठूंठ  न  पाओगी तुम
अश्क बनकर तेरी आँखो से बिखर जाऊँगा

मैं  हूँ  तकदीर का  मारा  मुझे  नीलाम करो
मैं वो सागर  हूँ जो हांथों  में सिमट जाऊँगा
करो एहसान लो खंजर  जिगर के पार करो
तेरे जीवन  में  लगा  दाग  हूँ  मिट  जाऊँगा

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