मेरी कलम से सृजित मुक्तक काव्य
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तुमसे बिछडा हूँ मैं किस ओर कहाँ जाऊँगा किसके आँचल में उठी पीर को छुपाऊँगा तुमने मरहम की जगह घाव खुरेदे मेरे दर्द इतना है कि बिन मौत ही मर जाऊँगा जिस्म की राख हवाओं में बिखर जायेग