मेकलसूता
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अमरकंटक की कहानी लिख रही है नर्मदा।। बह रहा यूँ वेग मानो शीश पर पर्वत लदा।। अंगड़ाइयाँ लेती लहर जैसे कोई नागिन चले।। गर्जना से आज अम्बर के सितारे भी हिलें।। काटती पत्थर जो गिरती भूमि पर लहरें तुम्हारी
अगला पड़ाव बंजर टोला सिवनी संगम मिल जाता है।। तन्वंगी सिवनी मिलन देख ये रोम-रोम खिल जाता है।। धीरे-धीरे नौकाविहार मैं पहुँच गया वो धुवाँधार।। खुद से रस्ते है काट रही पानी में इतनी तेज धार।। ऊपर नीचे द