“सूखे पेड़ के शब्द”
मैं सूखा दरख्त ,
खड़ा हूँ व्यस्त सड़क के किनारे,
हाँ मैंने कई वर्ष,कई दसक ,
समाज की सेवा की,
और प्रकृति की उपासना .
पर अब मैं सूख चुका हूँ,
पूरी तरह से निर्जीव हो चुका हूँ,
असंख्य गहरी जड़ो से लेकर चोटी तक,
मैं चेतनाशून्य हो चुका हूँ.
शायद द्वापर के यमलार्जुन की तरह ,
मैं भी शाप मुक्त हो चुका हूँ ,
अतः