तुम्हारे ऊपर बहुतों ने, बहुत कुछ लिखा ,
और मैंने भी उनमे से बहुतों को पढ़ा .
पर मुझे भी लगता है ,मैं भी तुम्हे एक "काव्य हार"
समर्पित कर दूँ.
अपनी अभिव्यक्तियों के मोतियों से ,
आप को तरबतर कर दूँ.
नहीं तो इस चेतना को एक खेद रहेगा, और शायद तुम्हे भी खेद होगा,
कि मैंने तुम पर कुछ नहीं लिखा.
न जाने कितने "दास" ,आप के दास बन गए,
कुछ महान बनने से पहले ,और कुछ महान बनने के बाद.
न जाने कितने दिग्विजयी,आप के चरणो में लोट -पोट हो गए.
न जाने कितने तपस्वियों की तपस्या ,आप के बिना पूर्ण सफल नहीं हो सकी,
भले ही आप किसी की प्रेरणा रही हो ,या किसी की परीक्षक.
पर आप की उपस्थिति,सब के जीवन में अपरिहार्य और अनिवार्य है.
आप ने ही जन्म दिया "भरत" को, आप ही रामचरितमानस की रचनाकार हो,
दुष्यंत और तुलसी तो मात्र बहाना हैं,सच तो शकुंतला और रत्नावली ही जानती होंगी.
राम की रामायण ,कृष्ण की रासलीला - महाभारत,सिद्धार्थ का बुद्धत्व
यह सब आप की ही कोख व मन से प्रगट हुआ.और न जाने कितना प्रगट होना अभी शेष है.
चाहे कोई आप को माया कहे या महामाया,
पर मैं तो भक्ति के रूप में आप को पाना चाहता हूँ ,आप को जानना चाहता हूँ.
मैं जिस देश में जन्मा हूँ ,वह राम -कृष्ण -बुद्ध -महावीर -विवेकानंद की धरती है,
तभी तो अनगिनत वार आक्रमण होने के बाद भी,इसकी हस्ती नहीं मिटती.
इस देश के पशु -पक्षी भी "ब्रह्म" ज्ञानी हैं ,चाहे काकभुशुण्डि हो ,हंस वेषधारी शिव हो,
नारायण का वाहन गरुण हो , गीधराज जटायू हो या वानरराज सुग्रीव हो.
आर्किमिडीज़ के सिद्धांत ,न्यूटन के नियम-क्रिया के बराबर , उससे कम या अधिक प्रतिक्रिया,गुरुत्वाकर्षण की शक्ति आदि शोध और संशोधन के विषय हो सकते हैं;
पर ब्रह्म सत्य हैं ,आत्मा अनित्य है,
यह अब विदेशियों को भी समझ में आने लगा.
महाभारत कार तो "मृत्यु" शब्द को भी असत्य मानते हैं,
गीता में प्रभु ने कहा -"आत्मा" अजन्मा और मृत्यु रहित है.
अतः हे प्रियतमा,हे प्रिया ,हे गजगामिनी ,हे मृगशावक नयनी,
आदि अनेक सुशब्दों से विभूषित प्रेयसी -
आज द्रुमों की छाया में, मैं तेरा आलिंगन कर लूँ.
आज प्रकृति के आँचल में ,मैं तेरा अभिवादन कर दूँ.
तभी तो कोई नया भरत ,भारत में जन्म लेगा ,जो नयी गाथाएं गढ़ेगा.