सफर_जारी_है.....सूरतगढ़ से सफर शुरू हो चुका है । बस में ज्यादा भीड़ नहीं है। बस मंथर गति से आगे बढ़ रही है । एक दो सवारियों को छोड़कर सभी अपनी अपनी सीट पर विराजमान। मैं और असलम भाई अपनी बातों में मशगूल हैं। हमारी सीट के बराबर एक महाशय खड़े हैं। कोशिश करने पर उनको बैठने की जगह मिल सकती है लेकिन हमार
पृथ्वी है तो हम है ... आइए, इसे बचाने का प्रयास करें । इस कार्य को हमारे अलावा कोई अन्य नहीं कर सकता है ।