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प्रेम की पाठशाला

Ram Binod Kumar

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हममें से अधिकांश लोग ज्ञान और जागरूकता के अभाव में अपनी महत्वपूर्ण चीजों और बहुमूल्य समय  को ही नजरअंदाज कर देते हैं, फिर समय बीत जाने पर हाथ मिलने और पछताने के सिवाय और कुछ भी हासिल नहीं होता है। समय पर जो काम थोड़ी उर्जा या श्रम से हो सकता था, उसके लिए बाद में बहुत बड़ी परिश्रम व संसाधनों की आवश्यकता पढ़ती है ,फिर भी उसकी सफलता में सदा गुंजाइश की कमी ही बनी रहती है। एक कहावत है ' आगे की खेती आगे-आगे पीछे की खेती भागे-योगे ' मतलब जो काम पहले हो जाता है ,वह आगे बढ़ जाता है, सफल हो जाता है, और पीछे की काम की सफलता का कोई भरोसा नहीं होता, कि वह कब पूर्ण होगा। जैसे बेमौसम की खेती और ठंडे लोहे पर प्रहार हमारी बहुत सारी ऊर्जा खर्च कराने के बाद भी उचित परिणाम नहीं दे पाता है।         पाठशाला चाहे कोई भी हो घर-परिवार की, समाज की ,परंपरागत-आधुनिक,   प्रेम-मित्रता की और चाहे अन्य किसी भी तरह की पाठशाला हो , वहाँ समय रहते बहुत कम लोग  ही अपनी पाठशाला की बातों पर कान दे पाते हैं। इस पर सीरियस न होने का परिणाम उन्हें असफलता और निराशा ही हाथ लगती है। फिर भी अगर एक बार की ठोकर खाकर हम संभल जाए तो आगे बढ़ाने का कुछ मौका हमें मिल पाता है । परंतु बार-बार गलतियाँ करने और लापरवाही करने का परिणाम जीवन भर का दु:ख-दर्द और असफलता का कारण बन जाता है । प्रस्तुत है यह उपन्यास ' प्रेम की पाठशाला '। आप सभी इसके साथ बने रहें और इसकी त्रुटियों-खूबियों पर भी अपनी राय देते रहें। 

prem ki pathshala

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