“निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल,बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को शूल.” उपरोक्तपंक्तियाँ भारतेंदु हरिश्चंद ने हिंदी के बारे में वैसे समय में लिखी, जब उन्हेंलगा कि अब हिंदी के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है । इसी खतरे को भांपते हुएउतरोत्तर समय में 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने ए