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मैं बिहार का बेटा हूं। मैं बिहार के ग्रामीण परिवेश के एक साधारण परिवार में पला-बढ़ा हूं। हम गांव से निकले हैं. पगडंडियों से चलकर राजधानी में पहुंचे हैं. विगत कई बरसों से देश के विभिन्न राज्यों में रहने के अवसर ने हमें ज़िंदगी की छोटी-बड़ी परिस्थितियों को नज़दीक से महसूस करने का मौका दिया। उसी तजूर्बे को शब्दों में पिरोने का प्रयास।…. साथियों, नेक व ईमानदार बने रहने की कोशिश आज के हालात में ऐसी जीवन शैली कई संकट खड़ा कर देती है। मगर नैतिकता की डोर मजबूती से थामे हूँ। अकेला पड़ जाता हूं तो भी “तेरा मेला पीछे छूटा, राही चल अकेला” “हर फिक्र को धुएँ में उडाता चला गया” “जिंदगी कैसी है पहेली हाय… कभी तो हसाए…कभी ये रूलाए” ऐसे हि कुछ गाने कान में इयरफोन के सहारे ढाढ़स बढ़ाते है। अपने जीवन मूल्यों के साथ जिंदा रहने की कोशिश में अक्सर अपने भी बेगाने हो जाते हैं, अपमान या असम्मान भी झेलने की नौबत आ जाती है बिचलित तो होता हूं मगर जल्दी संभल भी जाता हूं।….. हमारा दिली लगाव जीवन पर्यंत खेत-खलिहान से रहेगा. मुख्यतः हम कलम के मजदूर हैं. हमारी मजदूरी का क्षेत्र, सीमाओं से परे पूरी दुनिया है. जहां कहीं की अवाम सामाजिक-शैक्षिक-सांस्कृतिक गैर-बराबरी की शिकार है, मेरी कलम उन्हीं संघर्षरत अवाम के उद्देश्यों, उम्मीदों और लक्ष्यों के पक्ष में मजदूरी करने के लिये प्रतिबद्ध है.ज्यादा शब्द नहीं मेरे पास, जिंदगी को लुभाने के लिएहम तो जी रहे है बस, जिंदगी को आजमाने के लिए |जय हिन्द !! जय भारत !! जय बिहार

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kagajiishaq

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कागज सी जिंदगी.. स्याही सी तुम... लफ्जों सा मैं... लफ्जों में जान सी तुम...

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कागज सी जिंदगी.. स्याही सी तुम... लफ्जों सा मैं... लफ्जों में जान सी तुम...

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कभी कभी खुद को दोहराते रहना चाहिए

5 दिसम्बर 2015
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कभी कभी खुद को दोहराते रहना चाहिए, लिख कर, गा कर, हस कर, मुसकीया कर, बतिया कर और भी बहुत कुछ कर..अपने अंदर की गहराई को देखना जैसे अंतरिक्ष में अनन्त से मुलाकात की तरह....तुझसे हुई बात की तरह.. दोस्तों के साथ बिती सिगरेटी कस और ह्विस्की वाली रात कि तरह...बहुत पहले गए गांव के अहसास कि तरह.. खर्च कि गए

याद आते हो तुम जब हम इश्क़ लिख दिया करते हैं ।

5 दिसम्बर 2015
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मै तुम्हें जाडे मे किसी अनसुनी बेमतलब तेज चले हवाओं की तरह खामोशी से सुनना चाहता हूँ , जैसे कि बात कोई न हो बेवजह भी नहीं बस...जब तुम मैसेज करती हो, बोलती हो "आई लव यू मिस्टर" सिहर जाता हूँ ठंडी आह की तरह.. हो जाता हूँ मौसमी मैं भी, पा लिया करता हूँ हर जर्रा जर्रा, सजाये अपने खाब का । मैने लिखा था ख

खैर आप सब को हार्दिक शुभकामनाएँ

11 नवम्बर 2015
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रोजी रोटी के लिए का का नहीं करना पडता है बाबू..जहाँ सारा जमाना आज दिवाली टाईप अंदाज में मस्त हुए जा रहा है वही.. नौकरी पढाई लिखाई के चक्कर में बस पटाखा के आवाज, दिए के झिलमिल से ही हम घर से हजारो किलोमीटर दुर, कान में इयरफोन के सहारे फुल साउंड में मगन हैं...सच में गाना बजाना ना होता तो का होता रे जि

चलो एक खाब लिखते हैं..

7 नवम्बर 2015
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‪#‎चलो_एक_खाब_लिखते_हैं‬..चलो एक खाब लिखते हैं..चलो अपनी अपनी बात लिखते हैं..तुम अपने हालत..हम अपने जज्बात लिखते हैं..क्या..? तुम्हें याद नहीं..खैर.. चलो साथ साथ लिखते हैं..तुम्हारी पहली अवाज, मेरी पहली शायरी...हाँ ..हाँ वो पहली मुलाकात लिखते हैं...तेरा हसना.. मेरा रोना.. तेरा मेरा प्यार से भी ज्याद

काग़ज़ी इश्क़

3 नवम्बर 2015
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कुछ बात लिखे होते हैं..कुछ जज्बात छुपे होते हैं.. ईन खामोशियों में, भी..वर्ना खामोशियों में ईतना जोर कहा..?जो इनसानी फितरत बदल दे, बस अपने वजूद के दम पर..facebook.com/kagajiishaq

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