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याद आते हो तुम जब हम इश्क़ लिख दिया करते हैं ।

5 दिसम्बर 2015

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मै तुम्हें जाडे मे किसी अनसुनी बेमतलब तेज चले हवाओं की तरह खामोशी से सुनना चाहता हूँ , जैसे कि बात कोई न हो बेवजह भी नहीं बस...
जब तुम मैसेज करती हो, बोलती हो "आई लव यू मिस्टर" सिहर जाता हूँ ठंडी आह की तरह.. हो जाता हूँ मौसमी मैं भी, पा लिया करता हूँ हर जर्रा जर्रा, सजाये अपने खाब का । मैने लिखा था खाब याद है न ?
उस वक्त दीवार से घड़ी उतार कर समय को रोकने की नाकाम कोशिश करता हूँ ।वक्त रोकने की नाकाम कोशिश की भी हद सिमित होति है सिगरेट के साइज कि तरह,वक्त और सिगरेट खत्म सही, दिल में हमेशा रह जाते है जैसे कि सिगरेट का धुआँ..और बिता कल.. बिल्कुल तुम्हारे कहे "आई लव यू मिस्टर" की तरह.. तुम्हें सब पता है न ।

राज कुमार पाण्डेय की अन्य किताबें

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रचनाएँ
kagajiishaq
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कागज सी जिंदगी.. स्याही सी तुम... लफ्जों सा मैं... लफ्जों में जान सी तुम...
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काग़ज़ी इश्क़

3 नवम्बर 2015
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कुछ बात लिखे होते हैं..कुछ जज्बात छुपे होते हैं.. ईन खामोशियों में, भी..वर्ना खामोशियों में ईतना जोर कहा..?जो इनसानी फितरत बदल दे, बस अपने वजूद के दम पर..facebook.com/kagajiishaq

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चलो एक खाब लिखते हैं..

7 नवम्बर 2015
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‪#‎चलो_एक_खाब_लिखते_हैं‬..चलो एक खाब लिखते हैं..चलो अपनी अपनी बात लिखते हैं..तुम अपने हालत..हम अपने जज्बात लिखते हैं..क्या..? तुम्हें याद नहीं..खैर.. चलो साथ साथ लिखते हैं..तुम्हारी पहली अवाज, मेरी पहली शायरी...हाँ ..हाँ वो पहली मुलाकात लिखते हैं...तेरा हसना.. मेरा रोना.. तेरा मेरा प्यार से भी ज्याद

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खैर आप सब को हार्दिक शुभकामनाएँ

11 नवम्बर 2015
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रोजी रोटी के लिए का का नहीं करना पडता है बाबू..जहाँ सारा जमाना आज दिवाली टाईप अंदाज में मस्त हुए जा रहा है वही.. नौकरी पढाई लिखाई के चक्कर में बस पटाखा के आवाज, दिए के झिलमिल से ही हम घर से हजारो किलोमीटर दुर, कान में इयरफोन के सहारे फुल साउंड में मगन हैं...सच में गाना बजाना ना होता तो का होता रे जि

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याद आते हो तुम जब हम इश्क़ लिख दिया करते हैं ।

5 दिसम्बर 2015
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मै तुम्हें जाडे मे किसी अनसुनी बेमतलब तेज चले हवाओं की तरह खामोशी से सुनना चाहता हूँ , जैसे कि बात कोई न हो बेवजह भी नहीं बस...जब तुम मैसेज करती हो, बोलती हो "आई लव यू मिस्टर" सिहर जाता हूँ ठंडी आह की तरह.. हो जाता हूँ मौसमी मैं भी, पा लिया करता हूँ हर जर्रा जर्रा, सजाये अपने खाब का । मैने लिखा था ख

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कभी कभी खुद को दोहराते रहना चाहिए

5 दिसम्बर 2015
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कभी कभी खुद को दोहराते रहना चाहिए, लिख कर, गा कर, हस कर, मुसकीया कर, बतिया कर और भी बहुत कुछ कर..अपने अंदर की गहराई को देखना जैसे अंतरिक्ष में अनन्त से मुलाकात की तरह....तुझसे हुई बात की तरह.. दोस्तों के साथ बिती सिगरेटी कस और ह्विस्की वाली रात कि तरह...बहुत पहले गए गांव के अहसास कि तरह.. खर्च कि गए

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