रंग बदलने की फितरत और उदाहरण भले ही गिरगिट के हिस्से में आते हैं, लेकिन मानव जाति में भी कम रंग बदलू लोग नहीं हैं। सबसे ज्यादा यह प्रजाति आपको लोकतंत्र के मंदिर में मिल जाएगी ! बल्कि ऐसे लोगों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही है। तो साहेबान, कदरदान, मेहरबान, पेश है भ्रष्टाचार में सर से पांव तक डूबे हमारे देश की दास्तान। बिना लिए-दिए तो बाबू के हाथ से फाईल आगे सरकती नहीं, अफसर के दस्तखत होते नहीं, भले ही चार के बजाय चालीस दिन और चार महीने बीत जाएं। आखिर परंपरा भी कोई चीज है भाई ! देश से अंग्रेज तो चले गए, पर अपनी कूटनीति का कुछ हिस्सा यहीं छोड़ गए। लिहाजा बचे हुए हिस्से को आजमाने का काम सरकारें करती रहती हैं, अफसर भी करते हैं कि फूट डालो, राज करो, सामने वाला तो अपने आप ही केकड़ा चाल में फंसकर खत्म हो जाएगा। समय की नजाकत देखते हुए जितनी बार कुछ नेताओं ने अपने रंग बदले हैं, उससे तो लगता है कि गिरगिट को किसी कोर्ट में ऐसे लोगों पर मानहानि का मुकदमा दायर कर देना चाहिए, आखिर उसके हक हिस्से का रंग बदलू काम किन्हीं और लोगों ने (नेताओ) कैसे हथिया लिया। लेकिन यह गिरगिट की महानता ही है कि उन्होंने ऐसे लोगों को अदालती मामले में नहीं घसीटा और घसीट के करता भी क्या सलमान खान जेसे केस चलकर कुछ वर्षो में बाइज्जत बरी हो जाता ! उसे इस बात का फक्र भी है कि उसने अपना धर्म नहीं बदला, भले ही देश के आम लोगों का हक चूसकर मुटियाने वाले भ्रष्टाचारी अपना धर्म-ईमान बदलते रहें है !अब आप इसे मजाक में ले रहे हो मगर हमारे देश की सबसे गंभीर असाध्य समस्या है अब आम प्रजा को जागरूक होना होगा ! राजनीती का आज की सियासत ने क्या स्वरुप बना दिया ! साफ़ सुथरी सफ़ेद "खादी" को भी दागदार और कुरूप बना दिया जो नीति रची गयी थी देश और जनता के हित के लिए आज वही राजनीती तरस रही है अपने असली औचित्य के लिए राजनीती का असल औचित्य लौटना है, प्रजातंत्र में प्रजा का हित लौटाना है चेहरों की खोई दमक लौटाना है, खादी की खोई चमक लौटाना है ! वर्तमान में जिस प्रकार की राजनीति क परिस्थितियाँ देश में उत्पन्न की जा रही हैं उसमे साम्प्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता शब्द का बोलबाला है, अपने फायदे ले किये टोपी पहनने तथा पहनाने की बात अब पुरानी हो गयी है.! परम्परागत राजनीति में विशेष भाषा, परिधान और संस्कृति का दिखावी पोषण राजनीति शोषण का आधार बना. इसी के साथ-साथ ‘सेक्युलर’ बनने की होड़ में “अल्पसंख्यक राजनीति” का स्वरुप भी तैयार किया गया.! लेकिन तथ्यात्मक सामाजिक सत्य साबित करते हैं कि अब तक की जा रही इस राजनीति ने सामाजिक ताने-बाने को न सिर्फ गहरी चोट पहुचाई है बल्कि एक गहरी खाई बनाने का काम किया है. ये चार शब्द ... राजनीति का मूल स्तम्भ बन चूका है जिसके बिना आज की राजनीती अधूरी है जेसे शादी के लिए सात फेरे बिना शादी का कोई वजूद नही वेसे ही इन चार मुद्दों के बिना आज की राजनीती अधूरी है
1 शोषित, 2 पीड़ित ,3 वंचित 4 दलित…..आज की राजनीती इन्ही मुद्दों के इर्दगिर्द घुमती हुई नजर आएगी ! क्युकी राजनेताओ के स्वार्थ सिद्ध करने के लिए सिर्फ यही मुद्दे है ! भ्रष्टाचार (आचरण) की कई किस्में और डिग्रियाँ हो सकती हैं, लेकिन समझा जाता है कि राजनीतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार समाज और व्यवस्था को सबसे ज़्यादा प्रभावित करता है। अगर उसे संयमित न किया जाए तो भ्रष्टाचार मौजूदा और आने वाली पीढ़ियों के मानस का अंग बन सकता है । मान लिया जाता है कि भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे तक सभी को, किसी को कम तो किसी को ज़्यादा, लाभ पहुँचा रहा है। राजनीतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार एक-दूसरे से अलग न हो कर परस्पर गठजोड़ से पनपते हैं। मौजूदा हालात में कोई भी राजनीतिक दल भ्रष्टाचार से अछूता नहीं है.
उत्तम जैन (विद्रोही )