आज वर्तमान में हमारे देश की सबसे गंभीर समस्या तेजी से पनप रही है वह है तलाक नामक बीमारी ! जो व्यक्ति या नारी इस बीमारी से गुजरा है या गुजर रहा है तलाक नाम सुनते ही खुद अपने आपको दुर्भाग्यशाली समझने लग जायेगा ! आखिर यह समस्या क्यों पनप रही है ! आज क्यों अदालतो में हजारो लाखो इस तरह के केस लंबित पड़े हुए है ! यह एक विचारणीय प्रश्न है ! विवाह मात्र दो शरीरों का मिलन नहीं बल्कि दो परिवारों,सामाजिक,आर्थिक,धार्मिक तथा सांस्कृतिक परिवेशों का मिलन है | इस मिलन से बने संबंध हमारे जीवन के हर सुख-दुख में हमारा साथ निभाते हैं | पर कभी-कभी एक क्षण ऐसा भी आता है कि इस विवाह से जुड़े रिश्ते के साथ जीवन जीना दूभर हो जाता है ,जो पति-पत्नी कल तक एक दूसरे के सुख-दुख में एक दूसरे के साथ थे ,वे अचानक एक -दूसरे को देखना तक पसंद नहीं करते और एक समय ऐसा आता है कि उनका एक छत के नीचे निर्वाह मुश्किल हो जाता है ,तब सिर्फ और सिर्फ एक ही रास्ता सूझता है ,और वो रास्ता है वह है तलाक का ……!
क्या आपकी शादी भी ऐसे किसी दोराहे पर खड़ी है? शायद आपके जीवन-साथी ने आपके भरोसे को तोड़ा हो या फिर बार-बार होनेवाले झगड़ों की वजह से आपके रिश्ते में पहले जैसी मिठास नहीं रही। अगर ऐसा है तो शायद आप खुद से कहते होंगे, ‘हमारे बीच अब प्यार नहीं रहा,’ या ‘हम एक-दूसरे के लिए बने ही नहीं थे’ या ‘शादी के वक्त हमें पता ही नहीं था कि इसमें क्या-क्या शामिल है।’ आपके मन में यह भी खयाल आता होगा, ‘शायद हमें तलाक ले लेना चाहिए।’
मेरी एक सलाह तलाक का फैसला जल्दबाज़ी में नहीं करना चाहिए। पहले इस बारे में अच्छी तरह सोच-विचार कर लीजिए। यह ज़रूरी नहीं कि तलाक लेने से आपकी ज़िंदगी में छाए परेशानी के काले बादल छँट जाएँगे। इसके उलट अकसर यह देखा गया है कि तलाक से एक समस्या तो हल हो जाती है, लेकिन उसकी जगह एक नयी समस्या खड़ी हो जाती है। मेने किसी लेख क की एक किताब में पढ़ा “जो पति-पत्नी तलाक का फैसला करते हैं वे इस कदर अपने ख्वाबों-खयालों में खो जाते हैं कि वे सोचने लगते हैं कि इससे एकदम से सारी समस्याओं का हल हो जाएगा, रोज़-रोज़ की किट-किट से हमेशा की छुट्टी मिल जाएगी, उनके रिश्ते से खटास चली जाएगी और ज़िंदगी में चैन-सुकून आ जाएगा।
लेकिन यह उतना ही नामुमकिन है जितना नामुमकिन एक ऐसी शादीशुदा ज़िंदगी जीना जिसमें खुशियाँ ही खुशियाँ हो।” इसलिए यह जानना ज़रूरी है कि तलाक लेने के क्या-क्या नतीजे हो सकते हैं और उन्हें ध्यान में रखकर फैसला लेना चाहिए । “चतुर मनुष्य समझ बूझकर चलता है।” मेरी आज तक जितने भी तलाकशुदा व्यक्ति या महिला से बात हुई उन्होंने यही कहा तलाक लेकर उन्होंने गलत फैसला किया है ।शादी टूटने पर अकसर पत्नी को भयंकर आर्थिक समस्या से जूझना पड़ता है ! क्योंकि उन्हें बच्चों की देखभाल करनी होती है, नौकरी ढूँढ़नी होती है, साथ ही तलाक की वजह से मानसिक तनाव से भी गुज़रना होता है।”लोग तलाक तो ले लेते हैं, पर अकसर यह नहीं सोचते कि इसका बच्चों पर क्या असर होगा। मगर तब क्या अगर माता-पिता की आपस में बिलकुल नहीं बनती?
ऐसे हालात में, क्या तलाक लेना वाकई “बच्चों की बेहतरी” के लिए होगा? हाल के कुछ सालों में लोगों ने इस विचार पर सवाल उठाए हैं, खासकर तब जब छोटी-छोटी बातों पर तलाक लिया जाता है।“जिन लोगों की शादीशुदा ज़िंदगी खुशहाल नहीं है, उन्हें यह जानकर ताज्जुब होगा कि बच्चों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, वे अपने में खुश रहते हैं। जब तक परिवार एक-जुट रहता है, उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि मम्मी-पापा अलग-अलग सो रहे हैं।” यह बात सच है कि अकसर बच्चों को पता होता है कि उनके मम्मी-पापा के बीच झगड़ा चल रहा है और इसका बच्चों के कोमल दिल और दिमाग पर बुरा असर हो सकता है। मगर यह सोचना की तलाक लेना बच्चों के लिए अच्छा रहेगा बिलकुल गलत है। हमारे समाज में आज भी तलाक़शुदा स्त्री-पुरुष को इज्जत की दृष्टि से नहीं देखा जाता |
जहां तक मेरा मानना है कि कोई भी स्त्री तब तक अपना संबंध बचाती है जब तक की एकदम से असहनीय न हो जाए | तलाक की बात करना जितना आसान लगता है वास्तव में यह उतना ही कठिन व तकलीफ़देह होता है | तलाक की प्रक्रिया इतनी जटिल व लंबी होती है कि व्यक्ति मानसिक रूप से टूट जाता है ,और इसका सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव तो बच्चों पर पड़ता है ,अगर बच्चे नहीं भी हैं तो भी वह सामाजिक उपेक्षा का भी कारण बनता है | ऐसे में प्रयास तो यही करना चाहिए की आपसी सूझबूझ व सहयोग से झगड़ों का निबटारा कर लिया जाए | लेकिन कई बार स्थिति बेकाबू हो जाती है और उन परिस्थितियों में तलाक ही उचित व अंतिम विकल्प बच जाता है | जहां एक ओर स्त्रीयों ने पढ़-लिख कर अपना एक अलग मुकाम बनाया है तो जाहीर है उनकी सोच में भी बहुत अंतर आया है ,वही दूसरी ओर पुरुष आज भी स्त्री को उसी परंपरा के घेरे में देखना चाहता है ,जो तलाक का सबसे बड़ा कारण बनता है |
तलाक़शुदा स्त्री-पुरुष को समाज में आज भी उपेक्षित नजरों से देखा जाता है ,और तलाक के बाद कोई जरूरी नहीं कि दुबारा सब अच्छा ही हो | पीहर में ऐसी स्थिति हो जाती है की "धोबी का गधा घर का न घाट का" कई बार तो स्थिति पहले से भी बदतर हो जाती है ,,ऐसे में बेहतर तरीका तो यही है कि थोड़ा सा संयम और धैर्य से वैवाहिक जीवन बचाया जाए ताकि एक स्वस्थ समाज व स्वस्थ परिवार की रचना हो | आज के तेजी से बदलते परिवेश में करीब-करीब रोज ही अनगिनत शादियाँ तलाक की बलि चढ़ रही हैं ,इसका सबसे बड़ा कारण रिश्तों में धैर्य एवं सहनशीलता का अभाव है | तलाक लेना मानसिक व सामाजिक पीड़ा के साथ-साथ खर्चीला भी है और तलाक की प्रक्रिया इतनी लंबी होती है कि उसके बाद जीवन जीने का उत्साह ही क्षीण हो जाता है |
पर विडंबना यह है कि इतनी सारी दिक्कतों के बाद भी आज हमारे समाज में तलाक के केस सबसे ज्यादा हो रहे हैं !
उत्तम जैन (विद्रोही )
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