हिंदी ग़ज़ल
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ग़ज़ल ज़िंदगी मझधार की पतवार है किसको पता ? किसके हिस्से में यहां पर खार है किसको पता ? कर सको पूरा रखो तुम शौक़ उतना ही करीब , शौक़ मसलन इश्क़ में बाजार है किसको पता ? भूलकर जाना कभी
<p>ग़ज़ल</p> <p><br></p> <p>वक़्त लगता पुरानी सदी की तरह ।</p