विद्वानों ने मनुष्य को एक सामाजिक एवं विचारशील प्राणी के रूप में वर्गीकृत किया है। किसी मनुष्य के सम्पूर्ण व्यक्तित्व व चरित्र का उसके समाज पर प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव अवश्य पड़ता है। ऐसे में जब हम समाज में किसी मनुष्य को कोई अनुचित कार्य करता पाते हैं तो स्वतः ही उस व्यक्ति के शिक्षा-दीक्षा पर हमारे मन में स्वाभाविक रूप से प्रश्न उठने लगते हैं लोग कहने लग जाते हैं की जरूर ही ये कोई अशिक्षित होगा और या फिर जब आपके आस-पास कोई बच्चा कुछ शरारत या गलत हरकत करता है तो आपने लोगों को अक्सर ऐसा कहते सुना होगा कि क्या आपके विद्यालय मेंआपको यही शिक्षा दी जाती है। कहने का अर्थ यह है की व्यक्ति के व्यक्तित्व व चरित्र जिसमे उसका आचार-विचार शामिल होता है हम उसका आकलन उसके शिक्षा से जोड़ कर करते हैं इसका सीधा-सीधा आशय है कि विद्यालय और शिक्षक व्यक्ति के व्यक्तित्व औरचरित्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। आज भले हीशिक्षण मात्र एक पेशा बनकर रह गया हो लेकिन भारतीय इतिहास एवं दर्शन में शिक्षकों का सर्वोच्च स्थान दिया गया है भारत के अनेक महान शासकों एवं सम्राटों ने अपने जीवन में सदा ही अपने गुरुओं को सम्मान देकर उनकी कृपा प्राप्त की और अपने राज काज में आने वाली कठिनाईयों में अपने गुरुओं के ज्ञान व अनुभव का लाभ प्राप्त किया। ये गुरु मात्र पुस्तकीय ज्ञान देकर धनोपार्जन नहीं करते थे बल्कि कुलगुरु, राजनैतिक गुरु एवं आध्यात्मिक गुरु के रूप में अपने शिष्यों के जीवन को ज्ञान, शक्ति और सामर्थ्य से भरकर उनके व सम्पूर्ण राष्ट्र के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते थे। भारत का गौरवशाली स्वर्णिम इतिहास ऐसे अनेकों महान शिक्षकों एवं गुरुओं की चरण वंदना करता है और उनके अतुलनीय योगदान को सुनहरे अक्षरों से काल के पृष्ठ पर सदा सदा के लिए अंकित करता है। पुरातन काल से भारत में गुरु और शिष्य की परंपरा चली आ रही है महर्षि वेदव्यास, महर्षि वाल्मीकि, महर्षि सांदीपनि, गुरु द्रोणाचार्य, विश्वामित्र, परशुराम, दैत्यगुरु शुक्राचार्य, गुरु वशिष्ठ, देव गुरु बृहस्पति, कृपाचार्य, आदिगुरु शंकराचार्य, चाणक्य, स्वामी दयानन्दसरस्वती, श्री रामकृष्ण परमहंस, स्वामी समर्थ रामदास आदि ऐसे अनेक नामों का उल्लेख किया जा सकता हैं जो भारत के समृद्ध गुरु शिष्य परंपरा को मणिमय करते हैं ये नाम शिष्यों के जीवन में एवं समाज व राष्ट्र के निर्माण व उत्थान में शिक्षकों के महती योगदान को प्रतिबिंबित करते हैं। आज हम आये दिन प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्च शिक्षण संस्थाओं में छात्रों द्वारा शिक्षकों के साथ किये जाने वाले तथा शिक्षक द्वारा छात्र के साथ किये जाने वाले अभद्र व्यवहारों की ख़बरें पढ़ते हैं जो पूरी तरह से दुर्भाग्यपूर्ण एवं निंदनीय है ये घटनाएँ समय के साथ नैतिक एवं सामाजिक मूल्यों में ह्रास के द्योतक हैं इनसे ये समझ आता है की किस हद तक शिक्षण पेशे की गरिमा धूमिल हो चुकी है आज समाज को ऐसे शिक्षकों की आवश्यकता है जिनमे शिक्षा और शिक्षण के प्रति पूर्ण समर्पण व निष्ठा का भाव निहित हो जो शिक्षक के पेशे को मात्र धनोपार्जन के लिए एक पेशा ही न समझें बल्कि शिक्षित, सभ्य एवं सशक्त राष्ट्र व समाज के निर्माण का महत्वपूर्ण माध्यम भी जाने। ताकि आने वाले समय में फिर से यह भारत विश्वगुरु की प्रतिष्ठा प्राप्त कर पूरे विश्व का प्रतिनिधित्व कर सके।
-मोहित त्रिपाठी
(लेखक, शिक्षक एवं समाजसेवी)