रोशनी की मां भावुक हो जाती है
रोशनी की आंखों में भी खुशी के आंसू आ जाते हैं
सुमन रोशनी को गले से लगा लेती है
रोशनी बचपन से ही सुमन के गले लगे को तड़प रही होती है
यह सब देखकर रोशनी के पापा बहुत खुश होते हैं
और कहते हैं लाख-लाख शुक्र है खुदा तेरा आज तूने मेरी रोशनी के हिस्से की खुशी उसे दे दी मुझे भरोसा था
सुमन को एक दिन जरूर अपनी गलती का एहसास होगा और यह रोशनी को उतना ही मोहब्बत देगी जितना कि अपनी बेटे बेटियों को देती है
सब बहुत खुश होती हैं ,और रिंकी कहती है आज का खाना सब लोग साथ खाएगा रोशनी दीदी आज शाम आप यहीं रुक जाइए आज मिलकर पहले की तरह हम लोग खाना खाएंगे रोशनी कहती है नहीं मुझे जाना ही होगा केशव चाचा मेरा इंतजार कर रहे होंगे मैं उन्हें बिन बताए आई हूं और फिर मेरी दोस्त कल्पना भी मुझे ढूंढ रही होगी मैं आज जाती हूं फिर कभी आऊंगी
रोशनी की मां सुमन कहती है लगता है अभी भी तू मुझे माफ नहीं की है शायद इसीलिए खाने पर नहीं रूक रही है
रोशनी करती है नहीं मां ऐसी बात नहीं है मैं जरूर आऊंगी और खाना भी खाऊंगी
अभी-अभी रिंकी ने कहा है ना सब लोग साथ खाएंगे तो आलोक नहीं है ना मां मैं उसे ढूंढ के लाऊंगी तभी खाना खाएंगे हम लोग साथ में ऐसा कहकर रोशनी चली जाती है
अब रोशनी के पास सिर्फ एक ही काम था आलोक कहां होगा उसे कैसे ढूंढा जाए वह किस हाल में होगा वह दिन रात अब आलोक को ढूंढने में लगा दी आलोक को ढूंढते-ढुढते कई महीने बीत गए
पर आलोक की कोई खबर तक नहीं मिली एक दिन रोशनी चुपचाप अकेले बैठ यह सोच रही थी कि शायद अब आलोक कभी नहीं मिलेगा यह सोच सोच कर वह बहुत उदास हो रही थी तभी उसकी दोस्त कल्पना आती है कहती है रोशनी आज तू बहुत उदास है क्या हुआ रोशनी रहती है कुछ नहीं बस ऐसे ही
कल्पना कहती है नहीं इतनी छोटी बात तो नहीं होगी कुछ तो जरूर है क्या तू अपनी दोस्त को नहीं बताएगी कल्पना उसे बार-बार पूछती है फिर रोशनी कहती है लगता है अब आलोक हमें कभी नहीं मिलेगा मैं इतने महीने से उसे ढूंढ रही हूं उसका सुराग तक नहीं मिला
कल्पना कहती इतनी जल्दी हार मान जाओगी तुम तो एक बहादुर लड़की हो तुम्हें तुम्हारा भाई आलोक जरूर मिलेगा आलोक को ढूंढने में मैं और केशव चाचा तुम्हारी मदद करेंगे देखना वह जरूर मिलेगा कल्पना की यह बातें रोशनी की मन में एक उम्मीद जगा दी
अब कल्पना केशव चाचा रोशनी तीनों जी जान से आलोक को
ढुढने के लिए निकल पड़े
क्रमशः