shabd-logo

साहित्यकार 'कुंद' जी.........(एक संस्मरण)

4 जनवरी 2023

86 बार देखा गया 86

*🌷संस्मरण🌷..........*

आजमगढ़ जनपद के प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री जगदीश प्रसाद बरनवाल "कुंद" जी के सानिध्य में रहना किसी हरे-भरे विशाल वटवृक्ष की शीतल छाया में विश्राम करने के जैसा है। दिनांक 25/2/2022, दिन शुक्रवार को दोपहर के लगभग साढे बारह बजे मैं श्री "कुंद" जी से मिलने आजमगढ़ रेलवे स्टेशन के समीप स्थित उनके आवास पर पहुंचा ।

हालांकि श्री "कुंद" जी से हमारी जान- पहचान पिछले डेढ़-दो साल से ही है। ऐसे प्रतिष्ठित साहित्यकार जो मेरे इतने करीब हैं, उन्हें इतना देर से जान पाया। यह मेरा दुर्भाग्य था। इसका मूल कारण यह था कि मेरी साहित्यिक गतिविधियां काफी सीमित थी। श्री "कुंद" जी और मेरी जान पहचान होने की कहानी भी बड़ी अजीब है। कभी-कभी उस कहानी को याद करके मैं स्वयं पर झेप जाता हूं।

कोरोना काल के भयावह त्रासदी व लॉकडाउन के मध्य 12 जून सन् 2020 को शाम के लगभग चार बजे के करीब मेरे मोबाइल पर एक कॉल आई। मैंने कॉल रिसीव किया।

उधर से आवाज आई-

"क्या आप लालबहादुर चौरसिया "लाल" जी बोल रहे हैं?"

मैं ने कहा-"जी हां, आप कौन?"

"मैं 'कुंद' बोल रहा हूं।"

"आदरणीय ! मैं तो आपको नहीं जानता हूँ। परंतु बोलिए क्या काम है?" मैंने सहजता से पूछा।

"नहीं कोई काम तो नहीं है। एक आपकी रचना फेसबुक पर देखा और पढ़ा। जो कि भोजपुरी में है। बड़ी ही हृदयस्पर्शी रचना है। मुझे अच्छी लगी। रचना के नीचे आपका नाम व मोबाइल नंबर था। मैंने सोचा आपको फोन करके धन्यवाद दे दूँ।"

मैने बडे ही उत्सुकता से पूछा-"कौन सी रचना आदरणीय।"

"बड़का भइया शहर से अइले, केहू नइखे बोलत बा।"

"आदरणीय।बहुत बहुत आभार आपका।आपने रचना को सराहा।मेरी रचना धन्य हुई। बहुत बहुत प्रणाम आपको।"  काल समाप्त हुई।

मुझे बहुत खुशी मिली। जब एक अपरिचित व्यक्ति आपकी रचना की प्रशंसा करें तो इससे बड़ा रचना का कोई पारितोष नहीं हो सकता। मेरा मन हर्ष से खिल उठा। मुझे उस व्यक्ति के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई। वाणी की सहजता व मिठास ने मुझे आकर्षित किया। मुझे ऐसा लगा कि कोई प्रभावशाली व्यक्ति ही होंगे। ए व्यक्ति कोई और नहीं थे। हिंदी साहित्य जगत में वैश्विक स्तर पर अपनी साहित्यिक पहचान बनाने वाले श्रद्धेय श्री जगदीश प्रसाद बरनवाल "कुंद" जी ही थे।

उन्हीं से मिलने मैं उनके आवास पर अबकी तीसरी बार गया था। उनके भवन के ठीक पिछले अहाते से सटा 30 × 20 फिट का एक बड़ा सा हाल था। वही श्री कुंद जी के साहित्य साधना का मंदिर था। कक्ष बड़ा ही सुसज्जित था। गद्दे और चादर बिछे दो तख्त व कई कुर्सियां तथा सुसज्जित शीशे की बड़ी-बड़ी अलमारियों का रैक लगा था। जिसमें करीने से सजाए गये प्रशस्तिपत्रों, स्मृति चिह्नों के साथ-साथ साहित्यिक व पौराणिक पुस्तकों का अंबार किसी भी साहित्य प्रेमी का मन मुग्ध कर देने में सक्षम था।

मै उसी कक्ष में दाखिल हुआ।जहाँ पर श्री कुंद जी बैठे कुछ लिख रहे थे। प्रणाम किया। मुझे देखते ही वह आत्मीयता से खिल उठे।उन्होंने मेरा अभिवादन स्वीकार किया और आहलादित स्वर में बोल पड़े "आइए आइए लालबहादुर जी!,बैठिए।" हालांकि हमारे अंदर ऐसा कुछ भी नहीं था जो इतने बड़े साहित्यकार द्वारा इतना आदर मिल रहा हो। यह तो "कुंद" जी के मिलनसार व्यक्तित्व का प्रमाण व उनके साहित्यिक प्रतिभा की लचक थी। उन्हें अपनी साहित्यिक प्रतिष्ठा का कोई गुमान नहीं था। "कुंद" जी से मिलने जब भी कोई आता है तो वे उससे ऐसी ही आत्मियता से मिलते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि "कुंद" जी पधारे सज्जन को दशकों से जानते-पहचानते हो। यह उनका विशाल व्यक्तित्व था।

चाय - पानी के साथ-साथ साहित्यिक चर्चाएं हुई। हमने अपनी कई रचना श्री कुंद जी को सुनाई।उन्होंने सराहा। हमारे कवि मित्र श्री राकेश जी ने भी अपनी रचनाएं सुनाई। श्री "कुंद"जी ने बार-बार इस बात पर विशेष बल दिया कि यदि हमें रचना करनी है,साहित्य लिखना है,तो साधना करनी पड़ेगी। हमें साहित्य की पुस्तके पढ़नी चाहिए। ज्ञानार्जन करना चाहिए। बातों का सिलसिला चलता रहा। उन्होंने बताया कि उनकी अब तक एक साझा काव्य संग्रह "रोशनी के शब्द" मिलाकर कुल ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिसमें-

"सूरज का रूप" (काव्यसंग्रह)

"सच के करीब जीवन" (कहानी संग्रह)

"जीवन लय"(काव्यसंग्रह)

"अनुरंजिता"(लेख संग्रह)

"राहुल सांकृत्यायन"(जीवनी)

"बिरही विश्राम"(भोजपुरी नाटक)

"विदेशी विद्वानों की दृष्टि में हिंदी रचनाकार"(शोधग्रंथ)

"विदेशी विद्वानों का संस्कृत प्रेम"(शोधग्रंथ)

"विदेशी विद्वानों का हिंदी प्रेम" (शोधग्रंथ)

"सप्तमुक्ता" (बाल नाटक संग्रह) हैं।

सप्तमुक्ता तो इसी वर्ष प्रकाशित हुई,जो कि उनके छात्र जीवन के समय लिखे गए सात नाटकों का संग्रह है। जिसमें से एक नाटक "धरती के लाल" पर सन् 1966 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रथम पुरस्कार मिला था।

बातों का सिलसिला खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था। मैंने उनसे निवेदन किया कि सर कभी हमारे यहां आइए। किंतु उन्होंने अपनी शारीरिक अक्षमता जाहिर करते हुए बोले, "लालबहादुर जी मैं पिछले कई वर्षों से कहीं नहीं जा पाता हूं। क्योंकि मेरा पैर बिल्कुल काम नहीं करता है। अब तो एक हाथ भी मुझे धोखा देने की फिराक में है।"

मैने ढाढस दिया-"कोई बात नहीं सर, प्रकृति के आगे किसका बस है।"

हमने कौतूहल बस पूछा कि,"सर आपके इस साहित्यिक मंदिर में तो बहुत से लोग आए होंगे।"

उन्होंने सिलसिलेवार सबका नाम बताना शुरू किया -"हल्दी घाटी"के रचनाकार,वीर रस के प्रख्यात कवि स्व. श्याम नारायण पांडेय जी, स्व. गुरु भक्त सिंह भक्त, स्व. निर्मोही जी,श्री अशोक बाजपेयी की धर्मपत्नी रश्मि बाजपेयी, विभूति नारायण (साहित्यकार), ममता कालिया (साहित्यकार), श्री परिचय दास, महापंडित राहुल सांकृत्यायन की पुत्री जया सांकृत्यायन, मारीशस के उप प्रधानमंत्री की पत्नी सरिता बुधू( हिंदी और भोजपुरी साहित्यकार), श्री भारत भारद्वाज (आलोचक व समीक्षक), आईपीएस प्रताप गोपेंद्र(साहित्यकार), श्री पवन तिवारी (साहित्यकार), श्री भालचंद त्रिपाठी (गीतकार व कवि), डॉ श्याम वृक्ष मौर्य (समालोचक व चिंतक) डॉ. ईश्वर चंद त्रिपाठी,श्री हरिहर पाठक,डॉ शशि भूषण श्रीवास्तव प्रशांत, हास्य कवि श्री उमेश चंद्र मुहफट, श्री बालेदीन बेसहारा, श्री अटपट जी तथा आजमगढ़ स्थित अनेकों कवि,कवयित्रियाँ,नये रचनाकार व साहित्यकार उनसे मिलने उनके आवास पर आते-जाते रहे हैं।

समय बहुत हो चुका था। मैने विदा माँगी। उन्होंने अपनी नयी पुस्तक "सप्तमुक्ता" मुझे भेंट करके विदा किया। मैं उन्हें प्रणाम करके अपने घर को लौट आया।

---लालबहादुर चौरसिया "लाल"

गोपालगंज मार्केट, आजमगढ़

9452088890

लालबहादुर चौरसिया लाल की अन्य किताबें

1

"कथरी" ......(लेख)

3 जनवरी 2023
0
1
0

"कथरी"........        "कथरी" का नाम जेहन में आते ही मन बरबस बचपन में लौटने लगा। उसी बचपन में जहां हमारा आमना सामना लम्बे समय तक कथरी से हुआ था। रात को भोजन के बाद कथरी जी का रोजाना दर्शन,जहां निद्र

2

साहित्यकार 'कुंद' जी.........(एक संस्मरण)

4 जनवरी 2023
1
3
0

*🌷संस्मरण🌷..........* आजमगढ़ जनपद के प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री जगदीश प्रसाद बरनवाल "कुंद" जी के सानिध्य में रहना किसी हरे-भरे विशाल वटवृक्ष की शीतल छाया में विश्राम करने के जैसा है। दिनांक 25/2/20

3

पुस्तक समीक्षा

20 जनवरी 2023
1
0
0

पुस्तक समीक्षा - पुस्तक - "मुक्त परिंदे" मुक्तक संग्रह रचनाकार - श्री रामदरश पांडेय 'विश्वासी' समीक्षक- लालबहादुर चौ

4

प्रदेश गीत...…...(अपना उत्तर प्रदेश)

21 जनवरी 2023
0
0
0

हे प्रदेश ! उत्तरप्रदेश, तूं सच में बड़ा महान है।सदियों से तू पूजनीय है, तेरी ऊंची शान है।।राम, श्याम की जन्मभूमि,

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए