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सफर

9 सितम्बर 2016

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चल पड़ सफर पे, कोई तेरे साथ हो न हो

हंस दे तू खुल के, कोई हसीं बात हो न हो

ख्वाबों में हर रोज, मिलते रहना उससे तुम

क्या जाने हकीकत में, मुलाकात हो न हो

जिससे भी मिलो खुल के, हँस के मिलो तुम

न जाने कल को फिर यही, जज्बात हो न हो

चंद रोज ''राज'' सुकून से दिन गुजार लो

रौशन फिर ख्यालों की कायनात हो न हो

उलझो ना सवालों में जवाबों से बचो तुम

शायद हमेशा ऐसे ही हालात हो ना हो

इक बार मुड़ के बस देख लेना तुम मुझे

जहन में फिर तुम्हारे ख्यालात हो न हो !!



रणबीर सिंह कुशवाह की अन्य किताबें

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" वक़्त "

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6 जुलाई 2016
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सफर

9 सितम्बर 2016
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चल पड़ सफर पे, कोई तेरे साथ हो न हो हंस दे तू खुल के, कोई हसीं बात हो न होख्वाबों में हर रोज, मिलते रहना उससे तुम क्या जाने हकीकत में, मुलाकात हो न होजिससे भी मिलो खुल के, हँस के मिलो तुम न जाने कल को फिर यही, जज्बात हो न हो चंद रोज ''राज'' सुकून से दिन गुजार लो रौ

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