" चाँद "
चारो तरफ़ अँधेरा, सब कहते अँधेरी रात हैबात है कुछ और मगर, सब कहते यही बात है "राज" की एक बात तुम्हे, मै बतलाने आया हूँ चाँद से बेखबर उसकी, चांदनी से मिल आया हूँ लिपट गई थी चांदनी मुझसे, भूल कर बात सबइसीलिए तो छाई थी, देखो अँधेरी रात तबनासमझ चांदनी की तुम्हे, दास्तान सुनाने आया हूँ चाँद से बेखबर उसकी