वक़्त -ए -सफर करीब है, बिस्तर समेट लूँ
बिखरा हुआ हयात का ये दफ्तर समेट लूँ
फिर जाने हम मिलें ना मिलें ज़रा रुकें
मै दिल के आईने में ये मंज़र समेट लूं
गैरों ने जो सुलूक किए उनका क्या गिला
फेंकें हैं, दोस्तों ने जो "पत्थर" समेट लूं
कल जाने कैसे होंगे, कहाँ होंगे, घर के लोग
आँखों में एक बार, भरा - पूरा घर समेट लूं
"राज" भड़क रही है, ज़माने में जितनी आग
जी चाहता है, सीने के अंदर इसे समेट लूं !!!