गीत
तुम खुले केश छत पे न आया करो,
शब के धोखे में चँदा उतर आएगा ।
बेसबब दाँत से होंठ काटो नहीं ,
क्या पता कौन बेवक़्त मर जाएगा ।
होंठ तेरे गुलाबी शराबी नयन ।
संगमरमर सा उजला है तेरा बदन ।
इतना सजने संवरने से तौबा करो ,
टूट कर आईना भी बिखर जाएगा ।
शब के धोखे में चँदा उतर आएगा ।
सारी दुनिया ही तुम पर मेहरबान है , देख तुमको फरिश्ता भी हैरान है ।
मुसकुरा कर अगर तुम इशारा करो ,
आदमी क्या खुदा भी ठहर जाएगा ।
शब के धोखे में चँदा उतर आएगा ।
तुम तसव्वुर की रंगीन तस्वीर हो ,
कौन होगा बशर जिसकी तकदीर हो ।
मेरे गीतों को होठों से छू लो जरा,
बेसुरा जो वो सुर में उतर आएगा ।
शब के धोखे में चँदा उतर आएगा ।
…….. सतीश मापतपुरी