शिव के भावों के साकार रूप को शक्ति रूप में वर्णित किया गया हैं। शिव जो सत्य हैं सनातन हैं आदि हैं अनंत हैं अनामय हैं उन्ही के समस्त भावों की की उत्तपति शक्ति हैं। नवरात्री में शक्ति के नौ रूप की आराधना की जाती हैं जिसमे वो कभी ममतामयी माँ के रूप में रहती हैं कभी अपार क्रोधयुक्त काली स्वरूप में होती हैं कभी सृजन रूप धारण करती हैं तो कभी संहारकारिणी के रूप में अवतरित होती हैं। शक्ति के अवतार मानव को कर्म के प्रकार से मुक्त कराती हैं उन्हें बताती हैं कि कर्म कोई भी हो अगर उसके भाव में शिव हैं तो सभी कर्म सत्कर्म ही हैं चाहे हो सृजन हो अथवा विनाश केवल केंद्र बिंदु में अथवा भाव में शिव ही होने चाहिए। शिव जो कर्म से मुक्त हैं जो भवबंधनों से मुक्त हैं जो अद्वैत भाव रखते हैं। शक्ति की उपासना प्रत्येक व्यक्ति अपने इच्छा अनुसार दैनिक अर्चना - वंदना पद्धति में करता हैं लेकिन ध्यान की भावना और भक्ति भावना के जागरण के लिए एक मात्र तरीका हैं उपासना के लिए मानवी मनोभूमि की रचना के अनुरूप शब्द एवं भावों का निर्धारण करना पड़ता हैं यह एक वैज्ञानिक प्रणाली हैं। जो व्यक्ति अपनी अंतः चेतना को उस शक्ति के साथ जोड़ देते हैं वो अपने में उस शक्ति के अवतरण को महसूस करते हैं और लाभप्रद होते हैं। कुछ लोग जो तंत्र माध्यम द्वारा शक्ति को साधना चाहते हैं इस प्रकार की साधना अत्यंत दुर्गम होता हैं लेकिन जो भक्ति भाव से और वात्सल्य भाव से माँ को पुकारते हैं उन्हें माँ पुत्र के सामान प्रेम देती हैं उन्हें दुलार करती हैं उन्हें समस्त सिद्धियों और निधियों को प्रदान करती है। शक्ति से ही समस्त संसार का अस्तित्व हैं शक्ति से ही ईश्वर हैं शक्ति ही समस्त करण और कारण हैं। उस शक्ति को आराधते समय अपने भावों पर विचार अवश्य करना चाहिए।
जय माता दी।। 🙏🙏🙏🙏