- भारत को अत्यधिक मात्रा में जल विद्युत संभाव्यता का वरदान मिला है और वैश्विक परिदृश्य में दोहन योग्य जल विद्युत संभाव्यता की दृष्टि से भारत का 5वाँ स्थान है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुमान के अनुसार भारत में मितव्ययी तरीके से दोहन योग्य लगभग 1,48,700 मेगावाट संस्थापित क्षमता के स्तर की जलविद्युत संभाव्यता विद्यमान है।
- भारत में बेसिनवार संभावित क्षमता निम्नानुसार है-
- इसके अतिरिक्त 94000 मेगावाट संभावित संस्थापित क्षमता वाली 56 पम्पड स्टोरेज परियोजनाओं की भी पहचान की गई है।
- इसके साथ ही 1,512 स्थलों पर लघु, मिनी तथा माइक्रो योजनाएँ हैं जिनकी क्षमता 6,782 मेगावाट होने का अनुमान है। इस प्रकार समग्र रूप से भारत में लगभग 2,50,000 मेगावाट की जलविद्युत संभाव्यता विद्यमान है।
जलविद्युत के लाभ
- नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत - दुर्लभ ईंधन भण्डारों की बचत।
- प्रदूषण रहित होने के कारण पर्यावरण हितैषी
- ऊर्जा के अन्य स्रोतों की तुलना में उत्पादन लागत, प्रचालन और अनुरक्षण कम है।
- हाइड्रोइलैक्ट्रिक प्लांट्स को शीघ्रता से चालू और बंद किया जा सकता है। इस कारण सौर और पवन ऊर्जा से अनियमित आपूर्ति के कारण ग्रिड में होने वाले उतार-चढ़ाव के समाधान तथा तंत्र की विश्वसनीयता और स्थिरता बढ़ाने के लिये ये परियोजनाएँ उपयुक्त है।
- ताप विद्युत (35%) तथा गैस (लगभग 50%) की तुलना में इसकी क्षमता अधिक (90% से ऊपर) है।
- इन परियोजनाओं की शुरुआती स्थापना के बाद उत्पादन लागत मुद्रा स्फीति के प्रभावों से मुक्त रहती है।
- भण्डारण आधारित जलविद्युत योजनाओं से विद्युत के साथ-साथ सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण, पेयजल आपूर्ति, नौकायन, मनोरंजन, पर्यटन तथा मत्स्य पालन जैसे लाभ प्राप्त होते हैं।
- अधिकांश जलविद्युत परियोजनाएँ सुदूरवर्ती क्षेत्रों में स्थित होने के कारण पिछड़े क्षेत्रों का विकास करती हैं। जैसे - शिक्षा, चिकित्सा, सड़क संचार, टेलीकम्युनिकेशन इत्यादि।
- विद्युत ग्रिड के संतुलन के अलावा जलविद्युत भारत के लिये सामरिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। चीन सबसे बड़ी जलविद्युत क्षमता वाले उत्तर-पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश के एक हिस्से पर अपना दावा करता है।
- जलविद्युत परियोजनाओं के द्वारा भारत, चीन और पाकिस्तान की सीमा पर अवस्थित राज्यों में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा दे सकता है।
जलविद्युत की समस्या और समाधान
- हालाँकि जलविद्युत एक स्वच्छ ऊर्जा का विकल्प है किन्तु पर्यावरण और वन्यजीवों पर नकारात्मक प्रभाव, राहत और पुनर्वास जैसी समस्याएँ इससे सलंग्न हैं।
- इसके अतिरिक्त, भूमि उपयोग परिवर्तन, ग्रीनहाउस गैसों, जैसे-मीथेन का उत्सर्जन और बड़े-बड़े बांधों के कारण भौगोलिक एवं भूगर्भीय असंतुलन जैसी समस्याएँ भी हैं।
- इसलिये लघु जलविद्युत परियोजनाएँ एक बेहतर विकल्प प्रस्तुत करती हैं। भारत में लघु जलविद्युत परियोजनाओं को 25 मेगावाट तक मानकीकृत किया गया है। इन्हें नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के अंतर्गत रखा गया है।
- जबकि, 25 मेगावाट से अधिक की परियोजनाओं को वृहद् जलविद्युत परियोजना कहा जाता और इन्हें विद्युत मंत्रालय द्वारा प्रशासित किया जा