मन की भावनाओं और दिमाग में चलते विचारों के उथल - पुथल को कहीं ना कहीं प्रकट करना ही चाहिए क्योंकि ये अव्यक्त भाव और विचार इंसान को इन्हीं बिंदुओं तक सीमित कर देता है ।यह जरूरी नहीं कि सामने वाला इंसान हमारी बातों को ,विचारों को ठीक ठीक समझता ही हो , हमारी भावनाओं को महसूस करता ही हो ।हो सकता है वो हमारी बातों को अलग दृष्टिकोण से देखते हुए गलत भी ठहरा सकता है । इसलिए शायद आज भी हर इंसान को अपने विचारों और भावों की अभिव्यक्ति के लिए डायरी की जरूरत पड़ ही जाती है ।
मुझे साहित्यिक विधाओं में लिखने का ज्ञान नहीं परन्तु मैं लिखना चाहती हूं उन विचारों को जो हर दिन दिमाग में पनपते है, जो कभी अंदर तक झकझोर कर रख देते है जो कभी कभी तनाव का कारण बन जाते है तो कभी इन्हीं तनावों का निवारण ।
2/02/2022
आज कुछ ऐसी विपरीत परिस्थितियां उत्पन्न हुई कि लगा कि कहीं दूर चलीं जाऊं इन बातों से ,परिस्थितियों से ।अब और इन्हें नहीं सह सकती । लेकिन कैसे ? और कहां?
ये प्रश्न जब भी सामने आता है तो चारों तरफ के रास्ते बन्द नजर आने लगते हैं । सोच सोच कर दिमाग की नसें फटने को आतुर थी ऐसा लग रहा था कि चारों तरफ बस अंधियारा ही अंधियारा है । उस समय तो बस भागने को मन हो रहा था । लेकिन भागना ही तो हर समस्या का हल तो नहीं हो सकता न ? परिस्थिति और समय अपने वश से बाहर है तो मैं क्या कर सकती हूं सिवाय अपने मन को समझा - बुझा कर शांत रखने की। पर ये मन इतनी आसानी से शांत रहता कहां है। घंटो की मानसिक युद्ध के बाद जाकर ये परास्त होकर शांत होता है ।जो चीजें अपने वश में नहीं है उनके बारे में सोचकर क्या लाभ ? हम क्यों ये बार बार भूल जाते है कि कुछ चीजें समय व परिस्थिती के अनुसार ही होती है उनमें मनुष्य का कोई योगदान नहीं होता है । न वो परिस्थिति को बदल सकता है न होनी को तो क्यों न जो हो रहा है उसे शांत भाव से समझदारी के साथ स्वीकार किया जाए । जो होना है वो होकर ही रहेगा तो रोकर - गाकर , परेशान हो कर क्या फायदा ? अंततः हमें वही स्वीकार करना है तो अपने शक्ति को अपने भाग्य को कोसने,परिस्थितियों के दोषारोपण करने , मन हृदय को क्षुब्ध करने में क्यों खर्च करना बल्कि उसी शक्ति से धैर्य के साथ परिस्थितियों के साथ सामंजस्य बैठाने और खुद को निखारने में खर्च करना चाहिए जिससे भविष्य में आने वाली समस्याओं के समय हम भावनात्मक युद्ध में जीत सकें ।
नित्या 🙏