माना कि न थी नसीब के खाते में खुशहालियां,बर्बादियों को भी न जाने लगी ये किसकी नज़र है।
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<p>माना कि न थी नसीब के खाते में खुशहालियां,</p><p>बर्बादियों को भी न जाने लगी ये किसकी नज़र है।</p>
<p><strong>रोज आया-जाया करते हो आंगन तक मेरे,</strong></p> <p><strong>कभी मेरे घर पे ठहरो तो कहें।</
<p><strong>कुछ बारिशों से प्यार है</strong></p> <p><strong>कुछ बादलों से प्यार है</strong></p> <p><s
माना कि न थी नसीब के खाते में खुशहालियां,बर्बादियों को भी न जाने लगी ये किसकी नज़र है।--श्रीधर
अब कहां रह गई फुरसतें जमाने को जीने की,तिजारती रिश्तों के बीच कहां कद्र है सीने की। ---श्रीधर
बेसाख्ता तेरा नाम क्या आ गया जुबां पे सुबह-सबेरेआज दिन भर एक दर्जन गीत लिखे हैं नाम पर तेरे।--श्रीधर