shabd-logo

संडे मतलब एंटरटेनमेंट

2 मई 2022

16 बार देखा गया 16

रविवार ऐसे निकल जाता है जैसे किसी रेलवे-फाटक पर खड़े बाईक वाले के सामने से निकल जाती है ट्रेन। देखते ही देखते ओझल। शनिवार की शाम सुकून देती लगती है और रविवार की चिंता देती। शनिवार की शाम सजाये जाते हैं आँखों में खुद को जीने के ख़्वाब और रविवार को खुद-ब-खुद छप जाती है आँखों में अगले दिन की तस्वीर। मैं भी घर नहीं गया। सोचा था कुछ क्रियेटिव करूंगा। मसलन एक नया गीत लिख लूँगा, किताबों से कुछ खुराक ले लूँगा और मोबाइल से थोड़ी दूरी भी रख ही लूँगा। खुद को धोने मतलब साफ करने के इस माॅड में पहले शनिवार रात पौने 12 बजे कपड़े धोये और फिर बेड-शीट, टेबल, अलमारी और कमरे की सफाई ताकि रविवार को जब उठूँ, तो मन में कुछ और करना बाकी न रहे। उठा, नहाया और किताबों के पास गया ही, कि एक-डेढ़ घंटे बाद मन के दरवाजे पर 'संडे मतलब रेस्ट' और 'संडे मतलब एंटरटेनमेंट' वाली दस्तक मिली। दरवाजा खोलने उठा पर वहाँ तक जाकर वापस आ गया। पर एकबार उठकर जाने से किताबें भी रूठ गई। वापस आया और डिस्कवरी प्लस पर मदुरै वाले मीनाक्षी अम्मन मंदिर के चिथिरई त्योहार वाली डाक्यूमेंट्री देख ली। फिर किताबों के पास गया तो एक-आध फोन-काॅल्स ने फिर उन्हें रूठवा दिया। अबकी बार यू-ट्यूब पर 'शुद्र-द राईजिंग' मूवी चला ली। मूवी देखते-देखते दो-तीन बार जोर-जोर से रो भी लिया और मन में ठाना भी कि इस सबको सही करने के लिए मुझे बहुत मेहनत करनी है। बहुत सारा पढ़ना है। पर रविवार तो 'संडे मतलब एंटरटेनमेंट' वाला है ना! काॅलोनी में ही स्वीमिंग-पुल चला गया और रात को आकर व्हाट्सएप चेट करते-करते और गुलजार साहब की 'रात पश्मीने की' पढ़ते-पढ़ते सो गया। अभी उठते ही सोच रहा हूँ 'संडे मतलब फन-डे' ही रहा या कुछ ठीक-ठाक हुआ भी। खैर, अगले शनिवार की शाम के इंतजार में हूँ...

-रोहित कुमार विश्नोई
02 मई, 2022 (सोमवार)

रोहित कुमार विश्नोई की अन्य किताबें

Monika Garg

Monika Garg

बहुत सुंदर रचना कृप्या मेरी रचना पढ़कर समीक्षा दें https://shabd.in/books/10080388

3 मई 2022

1
रचनाएँ
रोहित कुमार विश्नोई की डायरी
0.0
वही जो रोज हो रहा है। आँखें जो देख पाती हैं और जो नहीं भी देख पाती। मन के अंदर और बाहर के सारे उपक्रम।

किताब पढ़िए