दिल मे आग का तूफान जला रखा था,
आंखो मे कुछ पाने को अरमान खिला रखा था,
मालूम ना थी मंजिल का ठिकाना मगर,
चाहत मे उसने जहाँ भुला रखा था।
इंटरनेट पे कभी गुगल करता,
अखबारो से कभी मंजिल का पता पूछ्ता,
दौर परता उम्मीद की थोरी सी किरन देख,
निराशा ने उसे दर्द का तेजाब पिला रखा था।
चलता रहा राहो पे बांधकर हौसलो की डोर से कमर,
बेहरुपियो ने उसे रास्ता भटका रखा था।
लुटा उसे जितना लूट सके,
जालिम दुनिया ने उसे पागल बना रखा था।
गिर चुका था जमी पे थक कर,
पत्थरो ने पैरो मे जख्म बना रखा था।
कैसे चले टुटकर भी उन झूठे उम्मीदो पे,
बस हौसलो ने ही उसे बुलंद बना रखा था।
आखिर हुआ करीब एक दिन मंजिल उसकी,
आशुओ ने आंखो पे परत बना रखा था।
चिपके रहे कदम जमी पे,
सच्च नही उसे यकिन हो रहा था।
क्या थी मंजिल, क्या थी हसरत,
जिंदगी ने उसे खामोश बना रखा था।
दिल मे आग का तूफान जला रखा था,
आंखो मे कुछ पाने को अरमान खिला रखा था,
मालूम ना थी मंजिल का ठिकाना मगर,
चाहत मे उसने जहाँ भुला रखा था।