यह कविता मेरी दूसरी पुस्तक " क़यामत की रात " से है . इसमें प्रेम औ रदाम्पत्य जीवन के उतार-चढ़ाव पर जीवनसाथी द्वारा साथ छोड़ देने पर उत्पन्न हुए दुःख का वर्णन है .
तुमने ऐसा क्यों किया
जीवन की इस फुलवारी में, इस उम्र की चारदीवारी में।
आकर वसंत भी चले गये, पतझड़ भी आकर चले गये।
जब साथ ना सॉंसों ने छोड़ा, उम्मीद ने भी दम ना तोड़ा।
तुम हाथ छुड़ाकर चले गये, पर तुमने ऐसा क्यों किया?
जीवन बस मीठा शहद नहीं, जीवन विष का प्याला भी है।
कहीं फूल बिछे हैं राहों में, कहीं पत्थर और ज्वाला भी है।
सुख और दुःख आते-जाते हैं, ढंग जीवन का निराला भी है।
तुम साथ चले बस थोड़ी दूर, पर तुमने ऐसा क्यों किया?
तुमसे किस बात का अब शिकवा, हम तुमको समझ ना पाये थे।
कलियों संग भाग्य ने कॉंटे दिये, मैंने वो सब अपनाये थे।
जब अपनों ने मुझको छोड़ा, तुम अपने बनकर आये थे।
फिर करके पराया छोड़ गये, पर तुमने ऐसा क्यों किया?
यदि दुःख ही मुझको देना था, तो अपना बनकर ना देते।
इतने दुःख सहे हैं जीवन में, कि थोड़े और भी सह लेते।
अपने विश्वास के दीपक से, मैं लड़ता था अंधियारों से।
दीपक वो बुझाकर चले गये, पर तुमने ऐसा क्यों किया?
मैं पुतला नहीं हूँ माटी का, जो टूटकर बिखर जाऊॅंगा।
खुद को समेट लूँगा फिर से, दीपक जो बुझा जलाऊॅंगा।
छोड़ा जिस मोड़ पे तुमने मुझे, उससे आगे बढ़ जाऊॅंगा।
तब तुम अतीत रह जाओगे, पर तुमने ऐसा क्यों किया?
इस समय की अविरल धारा में, जीवन आगे ही चलता है।
हैं जीवन पथ में मोड़ बहुत, पर जीवन आगे बढ़ता है।
पर एक दिन ऐसा आता है, जीवन आईना दिखाता है।
वो आईना तुमसे पूछेगा, कि तुमने ऐसा क्यों किया?
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