उम्र भर पूजा था जिसको अब वही पत्थर हुआ,
लग गई क्या मेरे सज़दों को किसी की बददुआ.
मेरी आँखों से मुसलसल अश्क बहते ही रहे,
तू हुआ पत्थर मगर रहमत को तेरी क्या हुआ.
तय हुआ था हम मिलेंगे ज़िन्दगी के मोड़ पर,
मोड़ आया तू न आया आखिर ऐसा क्या हुआ.
और कुछ कर ही न पाया अपनी अंतिम सांस तक,
हसरतों ने ज़िन्दगी से खेला जी भर कर जुआ.
हार मैं हरगिज़ न मानूंगा ये है मेरा मिज़ाज,
मेरी हर चाहत ने मेरे अज़्म को अक्सर छुआ.
मैं कोई पत्थर नहीं इंसान हूँ रखता हूँ दिल,
तू इसी दिल में रहे मांगी है बस इतनी दुआ.
रात हर जानिब है फैली, माँ की बाहों की तरह,
'शांत' बिखरी चांदनी जैसे बुज़ुर्गों की दुआ.