यादों की एक हाट सी लगती है शाम से
बिकते हैं मेरे ग़म जहाँ गीतों के नाम से
मैं उनको ढूंढ तो लूँ मगर कुछ पता चले
आवाज़ उसने दी है मुझे किस मक़ाम से
केवल ख़ुशी को बढ़के लगाया नहीं गले
मैं ग़म से भी मिला हूँ बड़े एहतराम से.
मैं ज़िन्दगी के मोड़ पे पंहुचा के तू मिला
घर से चला था यूँ तो किसी और काम से.
रहता हूँ 'शांत' हर घड़ी ग़म के नशे में चूर
मुझको कहाँ है वास्ता मीना औ जाम से