मुझे उम्मीद नही है,
कि वे अपनी सोच बदलेंगे..
जिन्हें पीढ़ियों की सोच सँवारने का काम सौपा है..!
वे यूँ ही बकबक करेंगे विषयांतर.. सिलेबस आप उलट लेना..!
उम्मीद नही करता उनसे,
कि वे अपने काम को धंधा नही समझेंगे..
जो प्राइवेट नर्सिंग होम खोलना चाहते हैं..!
लिख देंगे फिर एक लम्बी जांच, ...पैसे आप खरच लेना..!
क्यों हो उम्मीद उनसे भी,
कि वे अपनी लट्ठमार भाषा बदलेंगे..
जिन्हें चौकस रहना था हर तिराहे, नुक्कड़ पर..!
खाकी खखारकर डांटेगी,...गाँधी आप लुटा देना..!
उम्मीद नही काले कोटों से,
कि वे तारिख पे तारीखें नही बढ़वाएंगे..
उन्हें संवाद कराना था वाद-विवादों पर..!
वे फिर अगले महीने बुलाएँगे...सुलह आप करा लेना..!
कत्तई उम्मीद नही उन साहबों से,
कि वे आम चेहरे पहचानेंगे..
योजनाओं को जमीन पे लाना था उन्हें...!
वे मोटी फाइलें बनायेंगे...सड़कें आप बना लेना..!
अब क्या उम्मीद दगाबाजों से,
कि वे विकास कार्य करवाएंगे..
जनता को गले लगाना था जिनको ..!
वे बस लाल सायरन बजायेंगे, ..कानून आप बना लेना..!
उम्मीद तो बस उन लोगों से है,
जो तैयार है बदलने के लिए इस क्षण भी..
जो जानते हैं कि शुरुआत स्वयं से होगी..!
वे खास लोग एक आंधी लायेंगे, पंख आप फैला लेना..!