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डॉ. श्रीश के. पाठक की डायरी

डॉ. श्रीश के. पाठक

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do shrish ke pathak ki dir

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पुस्तक के भाग

1

साहित्य विभाजनकारी नहीं हो सकता.. जब भी होगा जोड़ेगा..!!!

13 अक्टूबर 2016
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साहित्य विभाजनकारी नहीं हो सकता, जब भी होगा जोड़ेगा.साहित्य शब्द कानों में पड़ते ही सहित वाला अर्थ दिमाग में आने लग जाता है. साहित्य में सहित का भाव है. कितना सटीक शब्द है. साहित्य शब्द में ही इसका उद्देश

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उम्मीद तो बस उन लोगों से है....!

3 नवम्बर 2016
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मुझे उम्मीद नही है, कि वे अपनी सोच बदलेंगे.. जिन्हें पीढ़ियों की सोच सँवारने का काम सौपा है..! वे यूँ ही बकबक करेंगे विषयांतर.. सिलेबस आप उलट लेना..! उम्मीद नही करता उनसे, कि वे अपने काम को धंधा नही समझेंगे.. जो प्राइवेट नर्सिंग होम खोलना चाहते हैं..! लिख देंगे फिर

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टच-कीपैडकालीन लोग

28 दिसम्बर 2016
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कल अचानक ही शहर-भ्रमण करना पड़ा. बस के लिए दिन वाला पास बनवा लिया था. एक छोटी सी गलती या यूँ कहें हड़बड़ी से गलत बस में बैठ गया, जो पहुँचती तो वहीँ थी, पर बहुत ही घूम-फिरके. ये हड़बड़ी बड़ी ही बेतुकी थी, क्योंकि दरअसल मुझे कोई खास जल्दी थी नहीं. सो मै भी बस में बैठा रहा. बहुत दिनों बाद मुझे एक प्रिय काम क

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अल्केमिस्ट: एक आत्मिक संवाद

1 जनवरी 2017
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अल्केमिस्ट की कहानी कुल पांच से छः पेज में आ सकती है. पर कहानी कहना ही उद्देश्य नहीं लेखक का. पाउलो कोएलो को पाठक से आत्मिक संवाद करना है. ALCHEMIST--पूरी पुस्तक बोल के पढ़ा, क्योंकि पुस्तक बिलकुल पोएटिक थी. एलन क्लर्क ने क्या उम्दा इंग्लिश अनुवाद किया है, मूल पुस्तक पुर्तगीज में है, कुल ६२ भाषाओँ

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