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उनकी भैसिया चोरी चली गई

9 जून 2016

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हमारे यहाँ मंत्री-विधायक-नेता तो महत्वपूर्ण जीव होते ही है  उसकी भैंसें भी कम महत्वपूर्ण नहीं होतीं। लोग मंत्री के कुत्ते से, उसकी भैंसों से, उसकी गायों से, उसके दरवाजे से, चौखट से, उसके पेड़-पौधों से सबका सम्मान करने लगते हैं। मंत्री न दिखे तो उसके पालतू कुत्ते को ही नमस्ते करके धन्य हो जाते हैं। 

एक मंत्री ने भैसें पालीं। वे गाय भी पाल सकते थे, लेकिन किसी ने उन्हें ज्ञान दे दिया कि गाय पालने से वे धार्मिक नज़र आएँगे और ख्वाहमख्वाह झण्डूबाम वाली मुन्नी की तरह बदनाम हो जाएँगे। हां-हां वही मुन्नी, जो कभी अपने डार्लिंग के कारण बदनाम हो गई थी और गली-कूचे में गाती फिरती थी-  'मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए'। 

तो, मंत्री जी ने साम्प्रदायिकता से ऊपर उठ कर भैंसे पाल लीं। भैंसें भले ही कम अक्ल की होती हैं, मगर दूध ज्यादा देती है। उसकी मलाई भी खूब जमती है। ये और बात है कि भैंस का दूध बुद्धि की धार को कम कर देता है। गाय और भैंस के चरित्तर का जिन्होंने अध्ययन किया है, वे दोनों पशुओं के बारे में जानते ही हैं। कहावत ऐसे ही नहीं बन गई है, 'भैंस के आगे बीन बजाए भैंस रही पगुराय'। आपकी कार के आगे कोई भैंस जा रही हो, तो हार्न बजा कर देखिए, भैंस हटेगी नहीं। मगर कभी कोई गाय आ जाए, तो अनुभव कीजिए। हार्न बजाते ही गाय किनारे हो जाएगी। 

मंत्री जी को गाय का महत्व बताया गया मगर उन्होंने भैंस को पसंद किया। वे बचपन से ही भैंस का दूध पीते रहे, इसलिए उनकी बुद्धि सहज रूप से भैंसोन्मुखी हो गई थी। वैसे भी मंत्रीजी को काले रंग से बड़ा लगाव है। उन का सारा काम काला। मन काला। दिमाग काला। तो भैंस भी काली। मंत्री जी दिन के उजाले में कुछ काम नहीं करते। रात जब भयंकर काली हो जाए तो उनका मूड जमता है। 

तो मंत्री जी ने भैंसे पालीं। काली भैंसे। भैंसों को नहलाने-धुलाने के लिए आदमी तैनात रहते इसलिए भैंसे गैंडों की तरह चमकती रहती। उन्हें देख कर मंत्री और इनके संत्री गद्गद होते रहते। भैंस को दूध और मलाई झक कर मंत्री जी और उनका परिवार मोटा-तगड़ा होता जा रहा था। लेकिन एक दिन अचानक मंत्री जी की चार भैंसे लापता हो गई। घास चरने गईं तो फिर लौटी नहीं। चरवाहे को भी समझ में नहीं आया कि भैंसें कहाँ चलीं गईं। मंत्री जी समझ गए कि ये विपक्ष का काम है। 

थाने में भैंस चोरी की रपट लिखा दी गई और न्यूज चैनलों में ब्रेकिंग न्यूज आने लगी- 

मंत्री जी की भैंसें चोरी.... मंत्री ने लगाया विपक्ष पर आरोप...भैंसें खोजने में लगा पुलिस महकमा।...

जैसे ही यह खबर लोगों तक पहुँची, सबने अपने-अपने तरीके से प्रतिक्रिया दी।  किसी ने कहा-  ''अच्छा हुआ। चोरी चली गई। इसका कुछ तो गया। हमारा भी सुख-चैन लूटा है इसने। किसी ने इसकी भैंसें चुरा लीं।''

विपक्ष ने कहा-  ''यह भगवान का न्याय है। मंत्री जी के पास इतनी भैंसें कहाँ से आईं, इसकी जाँच होनी चाहिए।''

चमचों ने कहा-  ''हम मंत्री जी की भैंस चोरी करने वालों को देख लेंगे।''

कुछ चमचे अपनी-अपनी भैंसें ले कर मंत्री जी के पास पहुँच गए- ''भैया जी, हमारी भैंइसिया रख लीजिए।''

चमचों को प्रेम देख कर मंत्री जी बोले-  ''बस कर पगलो, रुलाओगे क्या? तुम लोग अपनी-अपनी भैंसें अपने पास रखो, हमारी मुस्तैद पुलिस काम पर लग गई है। जल्द ही भैंसें हमारे अंगने में नज़र आएँगी।''

एक चमचा बोला-  ''भैयाजी, हमहू आपकी भैंसों को खोजेंगे।'' मंत्रीजी बोले-  ''ठीक है। आप लोगन भी पुलिस के साथ लग जाइए।''

और फिर भैंसों को खोजने का सिलसिला शुरू हुआ। जितने भी भैंस पालक थे, सबको थाने बुलवाया गया। धमकाया-चमकाया गया।  लेकिन भैंसों का पता नहीं चला। पुलिस वाले किसी की भी भैंसें खोल कर मंत्री के सामने ले आते और कहते- ''सर, ये रहीं आपकी भैंसें।''

मंत्रीजी ने अपनी भैंसों के ऊपर खास निशान बना रखे थे। वे निशान किसी भी भैंस में नz र नहीं आए। मज़े  की बात यह थी कि चार भैसें गुमी थीं और चार सौ भैंसें हाजिर की जा चुकी थीं। मंत्री सबको रख लेते तो एक बड़ी भैंसशाला बन जाती। लेकिन इस मामले में  मंत्री जी ईमानदार निकले। उन्हें अपनी भैंसे चाहिए थी। मगर भैंसें मिल नहीं रही थीं और पुलिस के आला अफसर बार-बार लज्जित हो रहे थे। अकसर मंत्रीजी फोन करके ताना मार देते थे-  ''आईजी साहेब, आपका विभाग मुस्तैदी से काम कर रहा है न?...मेरे जीते जी भैंसे मिल जाएँगी न?'' 

आइजी संकोच में भर कर बोलेते- ''सर, बहुत शर्मिंदा हूँ। फिर भी जिं़दा हूँ। पता नहीं, क्या हो गया है मेरे सिपाहियों को। बड़े-बड़े चोर पकड़ में आ गए, भैंस चोर पकड़ में नहीं आ रहे हैं?''

मंत्रीजी सोचने लगे, कहीं किसी ने बलि-फलि तो नहीं दे दी?... कोई काट कर तो नहीं खा गया? ...हाय-हाय, मेरी प्यारी भैंसों, तुम कहाँ हो? 

मंत्रीजी सूख कर काँटा होने लगे, तो पुलिस ने खुफिया लोगों की मदद ली।

...और एक दिन भैंस-चोर पकड़ में आ ही गए। पास के ही गाँव के लोग थे जो शान से भैंसे दुह रहे थे और मुटा रहे थे। 

पुलिस वालों ने उनकी जम कर  'आरती' उतारी। 

थानेदार ने पूछा-  ''सालो, तुमको और कोई नहीं मिला? मंत्रीजी की भैंसें चुरा ली? किसी की भी चुरा लेते। मंत्री ही मिला था?''

एक ग्रामीण बिल्कुल धीरे -से बोला-  ''चोर का माल चंडाल खाए।''

थानेदार कुछ-कुछ समझा और डंडा जमाते हुए बोला-  ''क्या बोला रे चांडाल, तेरी तो अभी खबर लेता हूँ।''

फिर उसकी जम कर ठुकाई हुई। उसे ठोकने के बाद थानेदार ने आइजी को सूचना दी-  ''सर, भैंसें मिल गईं हैं।'' 

आइजी ने मंत्री को फोन लगाया- '' सर, गुड न्यूज, इस बार आपकी ही भैंसें मिली हैं।''

मंत्रीजी ने मीडिया को सूचित किया-  ''भाइयो, आकर कवरेज कर लो। मेरी भैसें मिल गई हैं। थाने के बाहर पगुरा रही हैं।''

मीडिया वालों ने भैंसों को शूट किया। चोरों से भी बात की। 

एक चोर बोला- ''हमने सोचा, मंत्री की भैंसें हैं। चुरा लेंगे तो हमारी किस्मत चमक जाएगी। लेकिन हाय-हाय, हम तो पकड़े गए। अब जेल की हवा खाएँगे।''

थानेदार ने कैमरे के सामने अपनी मूँछों पर ताव देते हुए कहा-  ''हमें गर्व है कि हमने मंत्रीजी की भैंसें उनके हवाले कर दीं। भैंस चोरों को पकड़ लिया।''

एक पत्रकार ने पूछा-  ''पिछले साल जो डकैती पड़ी थी, उसके डकैत कब पकड़े जाएंगे?''

... ''सामूहिक बलात्कारी भी नहीं पकड़े गए अब तक।''.... ''जेबकतरे भी बढ़ गए हैं। किसी को तो पकड़ो।''

थानेदार बोला- ''हमारी पुलिस मुस्तैदी से काम कर रही है। देखिए, हमने मंत्रीजी की भैंसों से चोरों को पकड़ लिया है। अब बाकी चोर-डकैत भी पकड़ में आ जाएँगे। चलो, अभी तो आप मिठाइयों का भक्षण करें। भैंस चोरों की पकडऩे की खुशी में मंत्री जी ने भेजी हैं।''

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girishpankajkevyangya
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इनबॉक्स वाला ई मनुष्य ई जो नवा ज़माना है न साहेब, ई तो सचमुच 'ई'-मनुष्य का ही है.बोले तो, 'ई-मेल' का है। क्या 'मेल' और क्या 'फी-मेल', हर कोई इसी से खेल रहा है। हर तरफ 'ई' है। 'ई-बैंकिंग', 'ई-मार्केटिंग', 'ई-गवर्नेंस', 'ई-लूट', 'ई-ठगी', 'ई- लव', 'ई-रोमांस' आदि-आदि। कुछ ' बुड़बक लोग हमसे पूछते हैं, ''ई' का है भाई ?'' हम कहते हैं- ''ई ऊ है, जिसके बगैर अब आत्मा को मुक्ति नहीं मिल सकती।'' एक दिन की बात है, मुझे एक 'ई-मनुष्य' मिला। मॉल में मिला। बाजार में सामान्य मनुष्य मिलते है, मगर ई -मनुष्य टाइप के लोग आजकल मॉल में ही पाए जाते हैं. मनुष्य तो बहुतेरे देखे थे, मगर यह ई-मनुष्य था। वह बेहद गंभीर था। उसके चेहरे के भयंकर तनाव को देख कर मुझसे रहा नहीं गया। मैंने उसे गुदगुदाते हुए कहा- ''गिलीगिली, गिलीगिली।'' फिर भी वो हँसा नहीं। जबकि गुदगुदी कर दो तो पत्थर भी हँस पड़े। वह नहीं हँसा क्योंकि वह अकड़धारी ई-मनुष्य था। अपने यहाँ कुछ लोग खद्दरधारी होते हैं, कुछ अकड़धारी होते हैं। कुछ चक्करधारी होते हैं। और कुछ केवल लल्लूप्रसाद गिरधारी होते हैं। लेकिन यह ई- मनुष्य था।मैंने कहा, ''भाई मेरे, तुम मनुष्य जैसे लगते हो, थोड़ा तो मुसकराओ। क्योंकि केवल इंसान ही हँस सकता है, कोई पशु नहीं। इसलिए हंसी को भीतर से कुछ 'पुश' करो या 'पुल' करो, , बाहर आ जाएगी ''उसने चट् से कहा- ''तुमने मुझे पहचाना नहीं। मैं

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