shabd-logo
Shabd Book - Shabd.in

girishpankajkevyangya

गिरीश पंकज

1 अध्याय
0 व्यक्ति ने लाइब्रेरी में जोड़ा
0 पाठक
निःशुल्क

इनबॉक्स वाला ई मनुष्य ई जो नवा ज़माना है न साहेब, ई तो सचमुच 'ई'-मनुष्य का ही है.बोले तो, 'ई-मेल' का है। क्या 'मेल' और क्या 'फी-मेल', हर कोई इसी से खेल रहा है। हर तरफ 'ई' है। 'ई-बैंकिंग', 'ई-मार्केटिंग', 'ई-गवर्नेंस', 'ई-लूट', 'ई-ठगी', 'ई- लव', 'ई-रोमांस' आदि-आदि। कुछ ' बुड़बक लोग हमसे पूछते हैं, ''ई' का है भाई ?'' हम कहते हैं- ''ई ऊ है, जिसके बगैर अब आत्मा को मुक्ति नहीं मिल सकती।'' एक दिन की बात है, मुझे एक 'ई-मनुष्य' मिला। मॉल में मिला। बाजार में सामान्य मनुष्य मिलते है, मगर ई -मनुष्य टाइप के लोग आजकल मॉल में ही पाए जाते हैं. मनुष्य तो बहुतेरे देखे थे, मगर यह ई-मनुष्य था। वह बेहद गंभीर था। उसके चेहरे के भयंकर तनाव को देख कर मुझसे रहा नहीं गया। मैंने उसे गुदगुदाते हुए कहा- ''गिलीगिली, गिलीगिली।'' फिर भी वो हँसा नहीं। जबकि गुदगुदी कर दो तो पत्थर भी हँस पड़े। वह नहीं हँसा क्योंकि वह अकड़धारी ई-मनुष्य था। अपने यहाँ कुछ लोग खद्दरधारी होते हैं, कुछ अकड़धारी होते हैं। कुछ चक्करधारी होते हैं। और कुछ केवल लल्लूप्रसाद गिरधारी होते हैं। लेकिन यह ई- मनुष्य था।मैंने कहा, ''भाई मेरे, तुम मनुष्य जैसे लगते हो, थोड़ा तो मुसकराओ। क्योंकि केवल इंसान ही हँस सकता है, कोई पशु नहीं। इसलिए हंसी को भीतर से कुछ 'पुश' करो या 'पुल' करो, , बाहर आ जाएगी ''उसने चट् से कहा- ''तुमने मुझे पहचाना नहीं। मैं  

girishpankajkevyangya

0.0(0)

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए