ये कविता वक़्त के बदलते मिज़ाज से सम्बंधित है
इसमें ये बताया गया है ,कि किस तरह से समय व्यक्ति के जीवन में बदलाव ला सकता है
वक़्त
आज सवार हूँ मैं समय की
अनवरत डोलती कस्ती में
जो फंसी है जीवन के गहरे
और ठहरे भंवर में
क्षण क्षण आगे बढ़ते
डावांडोल सफ़र की अनजान मंज़िल का
पता कैसे करूँ
कैसे सम्भालूँ इस डगमग नवैया की
फिसलती पतवार को
कोई तो बने खिवैया
इस