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वसंत

31 जनवरी 2022

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खिले हैं फूल उपवन में,सुखद ऋतुराज आया है।

बजी है रागिनी मन में,नया उन्माद छाया है।

घिरी चहुँओर हरियाली,छटा अद्भुत निराली है।

विहँसती है सुखद सुषमा,लदी फूलों से डाली है।


खड़ी है खेत में सरसों,घुला सौरभ हवाओं में।

खुले हैं भाग्य धरती के,सुरभि फैली दिशाओं में।

कहीं कलरव सुहाता है,मधुप गुंजार करते हैं।

कहीं बेला ,कहीं चंपा ,कहीं कचनार हँसते हैं।


सजे हैं हार फूलों के,सभी बगिया लगे न्यारी।

सुगंधित रातरानी से,महकती रात है सारी।

सुरीली तान कोयल की,मधुर मदिरा पिलाती है।

सुहानी धूप को पाकर,धरा यह खिलखिलाती है।


मधुर मधुप्रात आता है,चटकती हैं नवल कलियाँ।

महक उठते हैं घर-आँगन,महकती हैं सभी गलियाँ।

सजी है शस्य से धरती,सुखद संसार लगता है।

धरा की देखकर शोभा,नया उत्साह जगता है।


प्रणय की बाँसुरी बजकर,हृदय में मोद भरती है।

सुधा की धार से नदियाँ,धरा को स्वच्छ करती हैं।

थिरक उठती है ये धरती,विपुल वैभव को धारण कर।

कृपा प्रभु की बरसती है,निखिल जगती के कण-कण पर।


रचनाकार--निशेश अशोक वर्धन

उपनाम --निशेश दुबे

ग्राम+पो--देवकुली

थाना--ब्रह्मपुर

जिला--बक्सर(बिहार)

मो नं--8084440519

ममम



निशेश अशोक वर्धनheshdubey1989 निशेषदुबिय१९८९ की अन्य किताबें

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सबलोग धरें हिय

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सबलोग धरें हिय

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(साहस और धीरता)16,16 सममात्रिकजो अटल खंभ-सा खड़ा रहे,विपदा के झंझावातों में।मन में साहस की ज्योति लिए,जगता संकट की रातों में।वो ही पाता है लक्ष्य सदा,जीवन को सफल बनाता है।उसने जितने सिद्धांत दिए,जग उसको ही अपनाता है।गिरि के मस्तक पर गिरती ह

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21 जुलाई 2020
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शांति

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