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शांति

18 नवम्बर 2022

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जगती के बहु कष्ट कराल।

प्रखर अग्नि सम ये विकराल।

चहुँदिशि छाया है आतंक।

वसुधा का यह घोर कलंक।

नहीं प्रेम की शीतल छाँव।

दहक रहा कटुता का भाव।

बिलख रहा है यह संसार।

छलक रही वेदना अपार।

छाया है तमिस्र घनघोर।

कालरात्रि विहँसे चहुँओर।

लड़ें परस्पर राष्ट्र अनेक।

कौन मिटाए यह अविवेक?

शांति कहीं रोती चुपचाप।

उसके माथे पर अभिशाप।

दहक रही हिंसा की आग।

जाग निठुर मानव अब जाग।

सतत भड़कते हैं अंगार।

बहती सदा लहू की धार।

बंधु-बंधु में बढ़ता द्वेष।

विषमय हुआ सकल परिवेश।

नारी सहती है अपमान।

पशुता है यह क्रूर महान।

साँसें तोड़ रही है आस।

पतझड़-सा रोता मधुमास।

आँसू झरते बारंबार।

मन में उमड़े व्यथा अपार।

कब होगा जग का उद्धार?

कैसे मिटे धरा का भार?

आएगा कब देव महान?

उर में लिए शांति का गान।

जिसमें घुल-घुल जाएँ प्राण।

मिले तप्त जीवन को त्राण।

हरि से पाएँ यह वरदान।

मिले मनुजता को सम्मान।

मिट जाए जग का परिताप।

शीतल हो उर का संताप।

जग में सबका हो कल्याण।

खुले बंध,खिल जाएँ प्राण।

सेवा में होकर तल्लीन।

रच दें हमसब सृष्टि नवीन।

रचनाकार----निशेश अशोक वर्धन

उपनाम---निशेश दुबे

ग्राम+पो---देवकुली

थाना--ब्रह्मपुर

जिला--बक्सर

बिहार

दू सं--8084440519

निशेश अशोक वर्धनheshdubey1989 निशेषदुबिय१९८९ की अन्य किताबें

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सबलोग धरें हिय

30 अगस्त 2018
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सबलोग धरें हिय

30 अगस्त 2018
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सबलोग धरें हिय प्रेमसुधा, सबके हित में सब कर्म करें। सबकी मधुबानि सुहावनि हो, सबके उर से मधुभाव झरें। सबलोग प्रसन्न रहें जग में, बहु कष्ट सहें पर धीर धरें। नित नेह बढ़े हरि के पग में, प्रभु मंगलकोष अपार भरें।

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साहस और धीरता

18 दिसम्बर 2019
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(साहस और धीरता)16,16 सममात्रिकजो अटल खंभ-सा खड़ा रहे,विपदा के झंझावातों में।मन में साहस की ज्योति लिए,जगता संकट की रातों में।वो ही पाता है लक्ष्य सदा,जीवन को सफल बनाता है।उसने जितने सिद्धांत दिए,जग उसको ही अपनाता है।गिरि के मस्तक पर गिरती ह

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सुखसिंधु

21 जुलाई 2020
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चाहे लुट जाए धन-धरती,मिट जाए विभव- स्वप्न सारा।चहुँओर जलें अंगार तप्त,या बहे शीत जल की धारा।जग प्रेम करे या घृणा करे,मन दोनों में सुख पाता है।सुखसिंधु यहाँ लहराता है।भवसागर में नित उठती हैं,द्वंद्वों की बहु भ्रामक लहरें।कुछ हर्षित करती हैं मन को,कुछ घाव बनाती हैं गहरे।ये हैं क्षणभंगुर- नाशवान,इनसे झ

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जीवन चलता ही रहता है

25 दिसम्बर 2021
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<p>जीवन चलता ही रहता है</p> <p>-----------------------------------------------</p> <p>यह काल निरन्तर

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वसंत

31 जनवरी 2022
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खिले हैं फूल उपवन में,सुखद ऋतुराज आया है। बजी है रागिनी मन में,नया उन्माद छाया है। घिरी चहुँओर हरियाली,छटा अद्भुत निराली है। विहँसती है सुखद सुषमा,लदी फूलों से डाली है। खड़ी है खेत में सरसों,घुला सौर

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जागरण

9 जून 2022
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मुझको प्रिय था उज्ज्वल प्रकाश, मुझको भाती थी चकाचौंध। भय भरती थीं नदियाँ गहरी, जग कहता था नाविक अबोध। दुर्गम अरण्य में पंथ खोज, जाना उस पार नहीं सीखा। चट्टानों की दीवार तोड़, जाना उस पार नही

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शांति

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