सुखसिंधु
चाहे लुट जाए धन-धरती,मिट जाए विभव- स्वप्न सारा।चहुँओर जलें अंगार तप्त,या बहे शीत जल की धारा।जग प्रेम करे या घृणा करे,मन दोनों में सुख पाता है।सुखसिंधु यहाँ लहराता है।भवसागर में नित उठती हैं,द्वंद्वों की बहु भ्रामक लहरें।कुछ हर्षित करती हैं मन को,कुछ घाव बनाती हैं गहरे।ये हैं क्षणभंगुर- नाशवान,इनसे झ