'फ़िल्मी ज्ञान' श्रंखला में लिखा गया यह लेख पूर्णतः 'देववाणी मुक्त' नहीं है, क्योंकि इसमें हमने संस्कृत के शब्दों का प्रयोग जमकर किया है। कहानी-कविता-लेख और हास्य-व्यंग्य इत्यादि कौन नहीं लिखना चाहता? किसी रचना को पढ़ने के बाद प्रत्येक आम व्यक्ति यही सीना ठोंककर यही कहता है कि 'बस, इतनी सी साधारण रचना? अरे, ऐसा तो हम भी लिख सकते हैं!' किन्तु ऐसा होता बिल्कुल नहीं है, क्योंकि जब वे कुछ लिखने बैठते हैं तो उनका दिमाग़ जवाब दे जाता है और घण्टों चिन्तन और मनन करने के बाद भी काग़ज़ पर कुछ नहीं उतरता। दिमाग़ में आई बात को काग़ज़ पर उतारना कोई हँसी-खेल नहीं है। लेखन करते समय दूसरी गाँठ बाँधकर रखने वाली बात यह है कि आप अपनी बात को स्पष्ट शब्दों में अपने पाठकों को समझाएँ और अपनी पसन्द की रचना नहीं, पाठकों के पसन्द की रचना लिखें। वैसे तो यह सर्वमान्य सिद्धान्त है कि लोग तभी आपको पसन्द करते हैं जब आप उनके पसन्द की बातें करते हैं। लेखन के क्षेत्र में भी यही नियम कड़ाई के साथ लागू होता है। आपकी लिखी रचना तभी सफल मानी जाती है जब 75 प्रतिशत लोग आपकी रचना को पसन्द करके अंगीकृत कर लें। 'ऐसा क्या लिखा जाए जो सभी को पसन्द हो'- सोचना ही लेखन का गूढ़ रहस्य है और इसे समझने के लिए गहन अनुभव की ज़रूरत होती है। गहन अनुभव रखने वाले भी कभी-कभी इस बात पर गच्चा खाकर भ्रमित होते देखे गए हैं।
यह बात बहुत कम लोगों को पता है कि अपने समय के हिन्दी फ़िल्मों के विख्यात महारथी निर्माता-निर्देशक राजकपूर ने भी भ्रमित होकर एहतियात के तौर पर हिन्दी फ़ीचर फ़िल्म बॉबी का एक 'शोक-समापन' अर्थात् दुःखान्त (tragic end) भी फ़िल्मा लिया था, जिसमें कहानी का नायक और नायिका दोनों मर जाते हैं, किन्तु बॉबी का सुखान्त संस्करण सुपरहिट हो जाने के कारण दुःखान्त संस्करण को लोकार्पित करने की नौबत ही नहीं आई।*
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि लम्बी-चौड़ी कहानियाँ लिखने से पहले जो विचार आता है उसको बाकायदा टिप्पण अर्थात् नोटिंग किया जाता है। प्रायः यह टिप्पण बहुत ही संक्षिप्त एवं गूढ़ और किसी को न समझ में आने वाली भाषा में होता है। प्रस्तुत है बच्चों की एक कहानी का उदाहरण टिप्पण-
'परी ओझल तो सितारे डूब गए। शिकायत की तो ईश्वर ने गाली देने के लिए कहा। बदले में ईश्वर के नाम एक रचना समर्पित की तो परी गलतफ़हमी में बहकने लगी।'
कुछ समझ में आया? नहीं न! जिनका लिखा टिप्पण होता है उन्हीं को समझ में आता है।
*Source: KALI MURGI