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विचार-टिप्पण

27 अगस्त 2015

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'फ़िल्मी ज्ञान' श्रंखला में लिखा गया यह लेख पूर्णतः 'देववाणी मुक्त' नहीं है, क्योंकि इसमें हमने संस्कृत के शब्दों का प्रयोग जमकर किया है। कहानी-कविता-लेख और हास्य-व्यंग्य इत्यादि कौन नहीं लिखना चाहता? किसी रचना को पढ़ने के बाद प्रत्येक आम व्यक्ति यही सीना ठोंककर यही कहता है कि 'बस, इतनी सी साधारण रचना? अरे, ऐसा तो हम भी लिख सकते हैं!' किन्तु ऐसा होता बिल्कुल नहीं है, क्योंकि जब वे कुछ लिखने बैठते हैं तो उनका दिमाग़ जवाब दे जाता है और घण्टों चिन्तन और मनन करने के बाद भी काग़ज़ पर कुछ नहीं उतरता। दिमाग़ में आई बात को काग़ज़ पर उतारना कोई हँसी-खेल नहीं है। लेखन करते समय दूसरी गाँठ बाँधकर रखने वाली बात यह है कि आप अपनी बात को स्पष्ट शब्दों में अपने पाठकों को समझाएँ और अपनी पसन्द की रचना नहीं, पाठकों के पसन्द की रचना लिखें। वैसे तो यह सर्वमान्य सिद्धान्त है कि लोग तभी आपको पसन्द करते हैं जब आप उनके पसन्द की बातें करते हैं। लेखन के क्षेत्र में भी यही नियम कड़ाई के साथ लागू होता है। आपकी लिखी रचना तभी सफल मानी जाती है जब 75 प्रतिशत लोग आपकी रचना को पसन्द करके अंगीकृत कर लें। 'ऐसा क्या लिखा जाए जो सभी को पसन्द हो'- सोचना ही लेखन का गूढ़ रहस्य है और इसे समझने के लिए गहन अनुभव की ज़रूरत होती है। गहन अनुभव रखने वाले भी कभी-कभी इस बात पर गच्चा खाकर भ्रमित होते देखे गए हैं। यह बात बहुत कम लोगों को पता है कि अपने समय के हिन्दी फ़िल्मों के विख्यात महारथी निर्माता-निर्देशक राजकपूर ने भी भ्रमित होकर एहतियात के तौर पर हिन्दी फ़ीचर फ़िल्म बॉबी का एक 'शोक-समापन' अर्थात् दुःखान्त (tragic end) भी फ़िल्मा लिया था, जिसमें कहानी का नायक और नायिका दोनों मर जाते हैं, किन्तु बॉबी का सुखान्त संस्करण सुपरहिट हो जाने के कारण दुःखान्त संस्करण को लोकार्पित करने की नौबत ही नहीं आई।* आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि लम्बी-चौड़ी कहानियाँ लिखने से पहले जो विचार आता है उसको बाकायदा टिप्पण अर्थात् नोटिंग किया जाता है। प्रायः यह टिप्पण बहुत ही संक्षिप्त एवं गूढ़ और किसी को न समझ में आने वाली भाषा में होता है। प्रस्तुत है बच्चों की एक कहानी का उदाहरण टिप्पण- 'परी ओझल तो सितारे डूब गए। शिकायत की तो ईश्वर ने गाली देने के लिए कहा। बदले में ईश्वर के नाम एक रचना समर्पित की तो परी गलतफ़हमी में बहकने लगी।' कुछ समझ में आया? नहीं न! जिनका लिखा टिप्पण होता है उन्हीं को समझ में आता है। *Source: KALI MURGI
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चाणक्यगीरी

10 अगस्त 2015
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कालिदास और विद्योत्तमा के विवाह की कहानी से कौन परिचित नहीं है? विद्योत्तमा द्वारा राजमहल से निकाले जाने के बाद की कहानी सिर्फ़ कालिदास के इर्द-गिर्द ही घूमती है, कहीं पर भी साहित्य की प्रकाण्ड विद्वान विद्योत्तमा का ज़िक्र नहीं है। इस प्रकार इतिहासकारों ने विद्योत्तमा के साथ बहुत अन्याय किया। यह कमी

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विमुखता का विकल्प

16 अगस्त 2015
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हमने अपने विशिष्ट शोध में यह पाया है कि आजकल की युवा पीढ़ी भक्ति-मार्ग से निरन्तर विमुख होती जा रही है और इसका कारण है उनका अँग्रेज़ी माध्यम से पढ़ा-लिखा होना। अँग्रेज़ी माध्यम से पढ़ाई करने के कारण वे हिन्दी के भक्ति गीत गाने में अपने आपको असहज महसूस करते हैं। अतः आज की युवा पीढ़ी को भक्ति मार्ग पर चलने

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फटकार

17 अगस्त 2015
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अन्तर्जाल में भ्रमण करते वक्त 'और वह रोती रही...' नामक एक लघुकथा टकरा गई तो हमें विवश होकर उस पर अपनी प्रतिकूल टिप्पणी लगानी पड़ी। हमारी प्रतिकूल टिप्पणी देखकर लेखक महोदय भड़ककर हमसे उलझ गए और उल्टा-सीधा बकने हुए कहने लगे कि हमारे पास भेजा नहीं है। वैसे उन्हें इतना क्रोधित होने की कोई ज़रूरत नहीं थी, क

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चाणक्यगीरी

18 अगस्त 2015
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एक दिन मधुबाला के भेष में मौर्य देश में रह रही अजूबी ने चाणक्य से पूछा- 'मौर्य देश में संदेश भेजने के लिए कबूतरों की कोई कमी नहीं। मगर इन कबूतरों का दबड़ा है कहाँ? मुझे तो आज तक कहीं दिखा नहीं। मौर्य देश के कबूतर एलियन की तरह संदेश लेकर आते हैं और एलियन की तरह गायब हो जाते हैं!'चाणक्य ने मुस्कुराते ह

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कामचोर

26 अगस्त 2015
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कामचोर बिना कपड़े उतारे, बिना साँस फूले-हाँफे, बिना पसीना बहाए, बिना रात-दिन मेहनत किए दूसरों की गाढ़ी मेहनत के फल को 'येन केन प्रकारेण' आत्मसात् करके तथा अपना बताकर एक दिन में चमत्कार करके दिखाते हैं, मगर कामवीर कपड़े उतारकर फूली हुई साँस के साथ हाँफते हुए पसीना बहाकर रात-दिन अनवरत मेहनत करते हैं और त

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विचार-टिप्पण

27 अगस्त 2015
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'फ़िल्मी ज्ञान' श्रंखला में लिखा गया यह लेख पूर्णतः 'देववाणी मुक्त' नहीं है, क्योंकि इसमें हमने संस्कृत के शब्दों का प्रयोग जमकर किया है। कहानी-कविता-लेख और हास्य-व्यंग्य इत्यादि कौन नहीं लिखना चाहता? किसी रचना को पढ़ने के बाद प्रत्येक आम व्यक्ति यही सीना ठोंककर यही कहता है कि 'बस, इतनी सी साधारण रचन

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रक्षाबन्धन पर दो उपयोगी टिप्स

29 अगस्त 2015
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'सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय' लिखे गए इस ज्ञानवर्धक महालेख 'रक्षाबन्धन पर दो उपयोगी टिप्स' को पढ़ने के बाद आपके मुँह से बरबस ही निकल जाएगा- 'वाह! रक्षाबन्धन पर झ्तना उपयोगी और ज्ञानवर्धक लेख आज तक न प्रकाशित हुआ है, न प्रकाशित होगा!!'उपयोगी टिप्स 1. यदि आप प्रेम के मैदान में कूदकर अपनी प्रेमिका को रोज़

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जन्मदिन

4 सितम्बर 2015
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प्रायः लेखकों और कवियों के मित्रों की बड़ी चाँदी रहती है। अपनी गर्लफ्रेण्ड को प्रभावित करने के लिए उसके जन्मदिन से पहले अपने कवि मित्रों का दामन थामकर हाथ-पैर जोड़ने लगते हैं- 'गर्लफ्रेण्ड का जन्मदिन आ रहा है। जन्मदिन पर एक अच्छा सा गीत लिखकर दो, यार। नहीं तो मेरी नाक कट जाएगी। मेरी नाक कटने से अब तुम

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