कामचोर बिना कपड़े उतारे, बिना साँस फूले-हाँफे, बिना पसीना बहाए, बिना रात-दिन मेहनत किए दूसरों की गाढ़ी मेहनत के फल को 'येन केन प्रकारेण' आत्मसात् करके तथा अपना बताकर एक दिन में चमत्कार करके दिखाते हैं, मगर कामवीर कपड़े उतारकर फूली हुई साँस के साथ हाँफते हुए पसीना बहाकर रात-दिन अनवरत मेहनत करते हैं और तब जाकर कई महीनों या सालों में वही चमत्कार करके दिखाते हैं। यह दुनिया बड़ी विचित्र है जो चमत्कार को नमस्कार करने में विश्वास रखती है। इसीलिए कामचोर की सर्वत्र पूजा होती है और कामवीर को हेय दृष्टि से देखा जाता है। यह कहाँ का इन्साफ़ है? कपड़े उतारकर मेहनत करने से शर्माने वाले कामचोर की सर्वत्र जय-जयकार हो और बेशर्मी के साथ कपड़े उतारकर मेहनत करने से बिल्कुल न घबड़ाने वाले कामवीर का सर्वत्र अपमान हो!
कामचोर की पहचान ही यही है। कामचोर काम करने से बहुत घबड़ाता है और काम करने से बचने के लिए तरह-तरह के बहाने बनाता है। कामचोर के पास काम करने का कोई अनुभव या काम करने में कोई विशेष दक्षता नहीं होती, जबकि कामवीर के पास काम करने का एक लम्बा-चौड़ा इतिहास होने के साथ-साथ काम करने में विशेष अनुभव और दक्षता होती है।# कामवीर के पास काम करने का विशेष अनुभव और दक्षता होने के कारण कामवीर के साथ काम करने वाले सहकर्मियों को विशेष आनन्द की अनुभूति होती है, क्योंकि अपनी विशेष योग्यता और काम-कौशल के कारण कामवीर अपने सहकर्मियों का पथ-प्रदर्शन करते रहते हैं। कामचोर के साथ काम करने वाले सहकर्मी घबड़ाकर जैसे-तैसे शीघ्रतापूर्वक काम तमाम करना ही श्रेयस्कर समझते हैं।
कामचोर हमेशा से कामवीरों से जलते आए हैं, क्योंकि वे इस सत्य के तथ्य से भली-भाँति अवगत होते हैं कि कामवीर अपनी कामवीरता के कारण नित्य काम करने का आनन्द लूट रहे हैं। फिर भी कपड़ा उतारकर पसीना बहाकर मेहनत करने के डर से कामचोर काम करने से मुँह फेरते रहते हैं। इसीलिए कामचोर कामवीरों को हतोत्साहित करने के लिए कामवीरों को गाली देने के लिए दूसरों को परामर्श देते रहते हैं। यह निन्दनीय है। कामचोरों को यह नहीं भूलना चाहिए कि यदि हर व्यक्ति काम करना छोड़कर कामचोर बन जाए तो वे कामवीरों के काम को अपना बताकर समाज और संसार में वाहवाही कैसे लूटेंगे? अतः कामचोरों को चाहिए कि वे कामवीरों को हतोत्साहित न करें और उन्हें कामवीर ही रहने दें तथा कामवीरों को भी चाहिए कि वे कामचोरों की बातों में न आकर निरन्तर कर्म-मार्ग पर लगे रहें।
काम करने से घबराना कैसा? गीता में स्वयं श्रीकृष्ण ने कर्म-मार्ग पर चलने का उपदेश देते हुए कहा है- 'योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः। सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते।।' अतः काम करने से बिल्कुल नहीं घबड़ाना चाहिए। काम करने में जो परम आनन्द है वह बिना काम किए निठल्ले बैठने में नहीं! कुछ लोग तो काम करने के इतने शौक़ीन होते हैं कि बिना समझे-बूझे हर काम में हाथ डाल देते हैं। यह अनुचित है। बिना समझे-बूझे हर काम में कूदने पर बहुत खतरा होता है। कभी-कभी तो जेल जाने तक की नौबत आ सकती है। इसलिए अच्छी तरह से समझ-बूझकर ही काम करने के लिए मैदान में कूदें।
सबसे मज़ेदार बात तो यह है कि इस लेख के रचनाकार को ठेके का काम, अस्थाई काम, अनुबन्ध पर काम, पार्ट टाइम काम इत्यादि बिल्कुल पसन्द न होने के कारण कुछ लोग कामचोर समझते हैं और यह बात निःसंदेह हास्यास्पद है!