हो रहा है
कभीखुश्क तो कभी नम सा हो रहा है,मिजाज़मौसम का भी तुम सा हो रहा है, तुम होयहीं कहीं या चली गयी हो वहीँ,तआवुन दिल से तभी कम सा हो रहा है, इल्म हैदुनिया इक मुश्त खाके-फ़ानी,ना जानेक्यों अभी वहम सा हो रहा है, ईलाज़े-दर्दमुमकिन नासूर का था नहीं,ये अज़बअज़ाब जभी रहम सा हो रहा है