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<span lang="HI" style="font-size: 12.0pt;line-height:115%;font-family:&quot;Nirmala UI&quot;,&quot;sans-serif&quot;;mso-fareast-font-family: &quot;MS Gothic&quot;;mso-bidi-language:HI">अम्बाला कैंट हरियाणा<span lang="HI" style="font-size:12.0pt;line-height:115%;font-family:&quot;Nirmala UI&quot;,&quot;sans-serif&quot;; mso-fareast-font-family:&quot;MS Gothic&quot;;mso-bidi-language:HI"> में रहने वाले, विकास शर्मा <span style="font-size:12.0pt;line-height:115%;font-family: &quot;Nirmala UI&quot;,&quot;sans-serif&quot;;mso-fareast-font-family:&quot;MS Gothic&quot;">'<span lang="HI" style="font-size:12.0pt;line-height:115%;font-family:&quot;Nirmala UI&quot;,&quot;sans-serif&quot;; mso-fareast-font-family:&quot;MS Gothic&quot;;mso-bidi-language:HI">दक्ष<span style="font-size:12.0pt;line-height:115%;font-family:&quot;Nirmala UI&quot;,&quot;sans-serif&quot;; mso-fareast-font-family:&quot;MS Gothic&quot;">'<span style="font-size:12.0pt; line-height:115%;font-family:&quot;Nirmala UI&quot;,&quot;sans-serif&quot;;mso-fareast-font-family: &quot;MS Gothic&quot;">, <span lang="HI" style="font-size:12.0pt;line-height:115%; font-family:&quot;Nirmala UI&quot;,&quot;sans-serif&quot;;mso-fareast-font-family:&quot;MS Gothic&quot;; mso-bidi-language:HI">हिमाचल विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। निजी क्षेत्र की कंपनियों में सेल्स विभाग में तीस साल तक कार्यरत रहे। इन्होने भारत भर में भ्रमण कर ज़िन्दगी को करीब से देखा है। आज़ाद ग़ज़ल के माध्यम से इन्होने अपने खट्टे-मीठे अनुभवों को पाठकों तक पहुँचाने का प्रयत्न किया है। <span style="font-size:16.0pt;line-height:115%;font-family:&quot;Nirmala UI&quot;,&quot;

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हो रहा है

23 अक्टूबर 2018
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कभीखुश्क तो कभी नम सा हो रहा है,मिजाज़मौसम का भी तुम सा हो रहा है, तुम होयहीं कहीं या चली गयी हो वहीँ,तआवुन दिल से तभी कम सा हो रहा है, इल्म हैदुनिया इक मुश्त खाके-फ़ानी,ना जानेक्यों अभी वहम सा हो रहा है, ईलाज़े-दर्दमुमकिन नासूर का था नहीं,ये अज़बअज़ाब जभी रहम सा हो रहा है

क्या सोचता हूँ मैं

23 अक्टूबर 2018
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पुछा है कि दिन-रात,क्या सोचताहूँ मैं,इश्क इबादत, नूर-ए-खुदा सोचता हूँ मैं, रस्मों-रिवायत की नफरत से मुखाल्फ़त, रिश्तों में इक आयाम नया सोचता हूँ मैं, मसला-ए-मुहब्बत तो ना सुलझेगा कभी,मकसद जिंदगी जीने का सोचता हूँ मैं, इक बार गयी तो लौटी ना खुशियाँ कभी,कैसे भटकी होंगी व

दोस्ती

5 दिसम्बर 2017
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शिक़वा

4 दिसम्बर 2017
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शिक़वा यह नहींकि हम पे ऐतबार नहीं,ज़ालिम, के लहज़े में रहाअब प्यार नहीं, जवाब देते क्याहम सवालिया नज़र का,ढूंढते रहे, पर दिखा उसमेंइंतज़ार नहीं, बातें तो देरतल्क, करतारहा वो मुझसे,खोखले अल्फ़ाज़में मिला अफ़्कार नहीं, साक़ी मेरा क्याबिगाड़ लेगी तेरी शराब,निगाहे-नरगिससे जो हुआ सरशार नहीं, माना नाराज़ हैपर जलील क

इंसानी हकूक और पत्थरबाजों की वहशी भीड़ 1

25 जून 2017
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अभी हाल में कश्मीर के नौहट्टा से एक दुखद घटना सुनने को मिली ...... शहीद DSP मौहम्मद अयूब की निर्मम हत्या से कुछ सवाल खड़े हुए है जो इन 2 रचनाओं के माध्यम से सामने रख रहा हूँ

इंसानी हकूक और पत्थरबाजों की वहशी भीड़

25 जून 2017
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अभी हाल में कश्मीर के नौहट्टा से एक दुखद घटना सुनने को मिली ...... शहीद DSP मौहम्मद अयूब की निर्मम हत्या से कुछ सवाल खड़े हुए है जो इन 2 रचनाओं के माध्यम से सामने रख रहा हूँ

उसके घर से पहले,

23 जून 2017
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खुद का सब्र आज़माया,उसके दर से पहले,रास्ते में थे कई मुकाम, उसके घर से पहले,ऊँचें बेशक़ कर लिए दर-ओ-दिवार अपने,यक़ीनन झुका था ईमान, खुद नज़र से पहले,बिना कहे-सुनेही जद्दो-जेहद बयाँ हो गयी,जी भर के रोया था जो, अपने फ़क़्र से पहले,शायद कुछ अधूरी सी ही रह गयी वो दुश्मनी,हमारी ज़िंदगी जो कट गयी, इक सर से पहले,

मुश्किल ना था यादों को तरो-ताज़ा करना

23 जून 2017
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मुश्किल ना था यादों को तरो-ताज़ा करना,बैठे-बिठाये खुद का ही खामियाज़ा करना, पहली ही दस्तक पे जो खोल दिया था मैंने,फ़िज़ूल था उसका बंद वो दरवाज़ा करना, रुकता भी तो शायद ना रोकता कभी उसे,वक़्त से चंद लम्हों का क्

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