आज मौनी अमावस्या है। कल रात बिस्तर में जाने से पहले ही मांजी ने याद दिला दिया था कि
"सुबह चार बजे उठ कर पहले पानी में गंगाजल और तिल डाल कर नहा लेना उसके बाद ही कुछ बोलना यानी नहाने तक मौन रहना है"
नहाने का पानी गर्म हो ले इतनी देर में बचपन में नहाने का वो दौर याद आ गया जब टीका लगे दो चार दिन और बीते होंगे। चेचक के टीके का असर बढ़ने लगा था। हाथ पर टीके वाली जगह पर छोटी छोटी फुन्सिया जैसी उभरने लगी थीं और बुखार भी बढ़ने लगा था। पिता ने स्कूल जाकर पूछा तो बताया गया कि यह स्थिति लगभग दो सप्ताह से बीस दिन तक रहने वाली है। मेरी कक्षा के और बच्चों की भो कमोवेश यही स्थिति थी। दो चार दिन नहाना बंद रहा लेकिन उसके बाद माँ ने नहलाने का एक नया तरीका खोज निकाला।
प्रतिदिन शाम को सोने से पहले बाल्टी भर पानी गर्म करके माँ एक टब नुमा बर्तन में बैठा कर अपने हाथो से हौले हौले नहलाती और बदन पोंछ कर गर्म कम्बल में इस प्रकार लपेट कर बैठा देती जैसे कोई पक्षी अपने नवजात परिंदों को रखता है।
इस प्रक्रिया से छोटे भाई मनोज और मुझे हम दोनों को ही गुजरना होता। एक आध बार आँखों में साबुन का पानी चला गया तो आँखों में मिर्ची लगने के कारण मैंने चिल्ल-पों मचा कर आसमान ही सिर पर खडा कर दिया।...अंततः रोते रोते सो भी गया।
जब सुबह उठता तो देखता कि पिताजी चेहरे पर शेविंग क्रीम लगाकर सफ़ेद झाग तैयार कर दाढी बना रहे होते।मेरे बालमन ने उसे प्रातःकालीन टूथपेस्ट से जोड कर देखा जिसका झाग मीठा मीठा होता था।
ब्रश करते पिता से इस शंका का समाधान कराया तो उन्होंने समझाया कि दाढ़ी बनाने वाला पेस्ट तो साबुन होता है।
मैं हैरत में पड़ गया और सोचने लगा कि जिस थोड़े से साबुन के पानी के आँख में पड़ जाने पर मैं आसमान सिर पर उठा लिया करता था वैसे ही साबुन का मोटा मोटा झाग बनाकर पिताजी किस तरह रोज अपने गालों पर लगा लिया करते थे। मेरे लिए यह एक कौतुहल था सो एक दिन पिता से पूछ ही लिया-
"क्या आपकी आँखों में साबुन वाली मिर्ची नहीं लगती पिताजी...?"
"नहीं.. हमें तो नहीं लगती मिर्ची..!" पिताजी ने बताया।
"क्यों..?" मेरा अगला प्रश्न स्वाभाविक था।
"क्योंकि ये मीठा वाला साबुन है" पिताजी ने बताया।
अब मेरी समझ में पिताजी की आँखों में साबुन की मिर्ची न लगने वाली बात आ गयी थी ..वो मीठा साबुन लगाते थे और माँ मुझे नहलाते समय मिर्ची वाला साबुन लगाती है।
बात मन में गांठ की तरह बाँध ली कि अब तो मीठे साबुन से ही मुहँ धोना है।जब शाम को माताजी नहलाना आरम्भ किया तो मुह में साबुन लगवाने के नाम रोने लगा...और मुह में मीठा साबुन लगाकर ही नहाने को तैयार हुआ... शायद माँ को नहीं मालूम था कि ये मीठा साबुन कौन सा होता है तो उन्हें बताया कि-
" जो साबुन पिताजी सुबह दाढ़ी बनाते समय लगाते हैं वह मीठा होता है"
माँ को जब यह पता चला कि यह बात पिताजी ने बताई थी कि दाढ़ी बनाने वाला साबुन मीठा होता है तो वो पिता की ओर मुखातिब होकर बोलीं-
"पता नहीं क्या उल्टा सीधा बताते रहते हो..अब तुम्हीं संभालो इन्हें..!"
पिता के चेहरे पर शैतानी भरी मुस्कान कौंध गयी और उन्होंने मीठे साबुन की वह ट्यूब यानी अपनी शेविंग क्रीम माँ को दे दी। माँ ने उसी शेविंग क्रीम को हाथो में रगड़ कर मेरे चेहरे पर लगाकर चेहरा साफ़ किया।
मुझे अच्छी तरह याद है कि इस तरह मीठे साबुन यानी शेविंग क्रीम से चेहरा धोने का यह सिलसिला काफी अरसे तक चला। बाद में माँ यह कहकर डराने लगी थी कि
"देखना इस साबुन से तुम्हारे चेहरे पर अभी से दाढ़ी उग आयेगी..!"
नन्हे बालक के चेहरे पर दाढ़ी उग आने की संभावना ने धीरे धीरे उस मीठे साबुन से चेहरा धो धोने की आदत से छुटकारा दिलाया था। (जारी)