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सफ़र-ऐ-जिन्दगी-7-पिता का जाना

4 फरवरी 2016

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featured image4 फरवरी मैं कभी नहीं भूल सकता क्योकि यही वो रात है जब ठीक चार साल पहले रात के तीसरे पहर यानी लगभग तीन बजे मेरे मोबाइल की घंटी बजी थी।इस घंटी ने मुझे गहरी नींद में जगा दिया था .....देखा मेरे छोटे भाई मनोज का फोन था.....मुझे याद आया.... दो या तीन दिन पहले मनोज से बात हुई थी तो यह बताया था की वो माजी और पिताजी के साथ अल्मोड़ा - नैनीताल की ओर धार्मिक पर्यटन पर निकला है... फोन उठाया तो उस तरफ से मनोज मुझे संबोधित कर ....दद्दा जी ...दद्दा जी...कहकर रोये जा रहे थे ..... मेरी नींद तो उड़ ही गयी थी.....मैं समझा कि मनोज के सम्मुख कोई बड़ी परेशानी आ गयी है ...मैंने उसे ढाडस बंधाते हुए तिखार कर पूछा -"क्या हुआ मनोज! परेशान क्यों हो? बताओ तो सही..! मैं हूँ ना...!""मैं हूँ ना..!" यह शब्द मैंने स्वयं कांपते हुए इसीलिये कहे थे कि छोटा भाई परेशानी में कुछ राहत महसूस करेगा ...परन्तु वह अपनी बात पूरी करने की बजाय उसी तरह रोता रहा- "दद्दा जी....पिताजी....""हाँ ...हाँ ...बोलो ना ...क्या हुआ पिताजी को?"कहने को तो कह गया परन्तु किसी बुरी आशंका से कांप गया....मोबाइल पर हो रही बातचीत सुनकर अब तक सुमन भी जाग चुकी थी....उन्होंने भी ...क्या हुआ ....क्या हुआ...पूछना आरम्भ कर दिया....अब मनोज ने रोते रोते अपना वाक्य पूरा किया-"दद्दा जी....पिताजी नहीं रहे...."अब मेरी स्थिति काटो तो खून नहीं वाली हो गयी......क्या..?.कब?...कैसे....? ....आदि अनेक सवाल पूछ डाले। मनोज ने जो बताया उसमे से कुछ सुना और कुछ नहीं सुन पाया...माथा पकड़ बैठ गया ...क्या करूँ कुछ सूझ नहीं रहा था ....बस इतना याद आया कि दो दिन पूर्व मांजी से बात हुयी थी तो माँ ने ये बताया था कि आठ फरवरी का रिजर्वेशन है...वो लोग नौ तारीख की सुबह आयेंगे....ये क्या हो गया....जिसने मुझे चलना सिखाया.......वो ऐसे मुझसे मिले बगैर हमेशा के लिए चले गए.... मैं कितना दुर्भाग्यशाली हूँ कि अंतिम क्षणों में उनके पास भी न रहा....और....यह सुनकर मुझ अभागे का रोना भी नहीं फूटा...मित्रो!आज पिता को गए चार साल पुरे हो गए ....

अशोक कुमार शुक्ला की अन्य किताबें

प्रियंका शर्मा

प्रियंका शर्मा

मन में बुरा तो लगा इसे पढ़ के , मगर इतना ज़रूर कहूँगी की माता पिता हमसे दूर नही होते . आप कभी भी किसी तकलीफ में हो , बस उन्हें मन में याद कीजियेगा , आप को आभास होगा की वो आपको देख रहे है या आपकी बात sun रहे है . उनका ही आशीर्वाद होता है जो हम लोग जीवन में सुख और खुशिया प्राप्त करते हैं .

5 फरवरी 2016

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रचनाएँ
ashokshukla
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कोलाहल से दूर
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सफर-ऐ-जिंदगी-१

1 फरवरी 2016
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मेरी छोटी बहिनकी पुत्री आयु0 पूर्तिश्री के विगत जन्मोत्सव के अवसर पर मेरे माता तथा पिता आयु0 पूर्तिश्रीको आर्शिवाद देने के लिये उपस्थित थे। बच्चों के द्वारा केक काटने की जिद और संस्कारोकी सामान्य रूढियों के सामंजस्य के अनुरूप केक भी लाया गया और पिताजी तथा मांजी केद्वारा आयु0 पूर्तिश्री को रोली अक्षत

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सफ़र-ऐ-जिन्दगी-7-पिता का जाना

4 फरवरी 2016
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4 फरवरी मैं कभी नहीं भूल सकता क्योकि यही वो रात है जब ठीक चार साल पहले रात के तीसरे पहर यानी लगभग तीन बजे मेरे मोबाइल की घंटी बजी थी।इस घंटी ने मुझे गहरी नींद में जगा दिया था .....देखा मेरे छोटे भाई मनोज का फोन था.....मुझे याद आया.... दो या तीन दिन पहले मनोज से बात हुई थी तो यह बताया था की वो माजी औ

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सफ़र-ऐ-जिन्दगी--स्कूल में दाखिला

5 फरवरी 2016
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(फ़ालतू की बाते मत करना)अब की पीढ़ी तो बहुत छोटी उम्र में ही प्रेप और नर्सरी में दाखिल हो जाती है और कुछ एक साल के बाद ही प्राइमरी शिक्षा तक पहुँच पाती है इसलिए शायद ही कोई हो जिसे वो दिन याद रहे जब वो पहली बार स्कूल गए हो ....लेकिन उस जमाने में पांच साल से पहले किसी बालक को स्कूल भेजने के बारे में

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सफ़र-ऐ-जिन्दगी-11-मीठा वाला साबुन

8 फरवरी 2016
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आज मौनी अमावस्या है। कल रात बिस्तर में जाने से पहले ही मांजी ने याद दिला दिया था कि"सुबह चार बजे उठ कर पहले पानी में गंगाजल और तिल डाल कर नहा लेना उसके बाद ही कुछ बोलना यानी नहाने तक मौन रहना है"नहाने का पानी गर्म हो ले इतनी देर में बचपन में नहाने का वो दौर याद आ गया जब टीका लगे दो चार दिन और बीते ह

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(सफ़र-ऐ-जिन्दगी-19-मेरे सामजिक सरोकार)

18 फरवरी 2016
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छोटी बहन "बेबी" ने हमारे परिवार में आकर हम दोनों भाइयो के लिए एक खिलौना जैसा दिला दिया था। स्कूल से छुट्टी होने के तुरंत बाद हम घर पहुँच कर पलंग पर लेटी उस नन्ही मुन्नी को दुलारा करते थे। कई बार हम दोनों अपने घर पर मोहल्ले भर के बच्चों का जमावड़ा लगा देते। बचपन के उन दोस्तों में से कुछ के नाम आज भी य

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गऊ माता की जय हो...

3 अप्रैल 2017
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किस्सा कुछ यूँ है की हमारी दादी बहुत बड़ी गौ भक्त थी। बाबा को दान में कही एक बछिया मिली तो दादी ने गंगा मैया के नाम पर उसका भी नाम नाम रख दिया गंगा...! ..हां तो दादी जी के सेवा सत्कार से ये गंगा मैया खूब फली फूलीं... यमुना, कावेरी, गोदावरी नाम की कई गैया हो गयी लेकिन दादी की गऊ भक्ति में कोई कमी नही

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