किस्सा कुछ यूँ है की हमारी दादी बहुत बड़ी गौ भक्त थी। बाबा को दान में कही एक बछिया मिली तो दादी ने गंगा मैया के नाम पर उसका भी नाम नाम रख दिया गंगा...!
..हां तो दादी जी के सेवा सत्कार से ये गंगा मैया खूब फली फूलीं... यमुना, कावेरी, गोदावरी नाम की कई गैया हो गयी लेकिन दादी की गऊ भक्ति में कोई कमी नहीं आयी। उन सबका सेवा सत्कार खूब मन लगाकर करतीं। एक बार तो गोदावरी ने उनके पांव पर अपना खुर इतने प्यार से रख दिया कि दादी के पाँव में प्लास्टर चढ़ाना पड़ा। इस दौरान इन गौमाताओं की सेवा सुश्रुसा के लिए दो लोग रखे गए एक नौकर और उसकी नौकरानी। लेकिन मजाल कि गऊ माताएँ उन दोनों से संभले। जब तक दादी लंगड़ाती हुई गौशाला में आकर प्यार से थपथपा कर यह न पुंछ ले कि -
"..का बात है गोदावरी..? काहे बिल्लवाये हौ..?"
तब तक गोदावरी पास आने वाले को अपनी सींघो से डराती ही रहती थी। ऐसे में एक दिन एक "ख़ास मेहमाननी" का घर पर आना हुआ तो किसी कारण गोदावरी मैया खूंटे से खुल गयीं और अपने सींघ उठाकर इतनी तेज उन "ख़ास मेहमाननी" की और लपकीं कि वो बड़ी जोर से चीखीं और दौड़कर हमसे लिपट गयीं।
कसम से पहले तो हम सकपकाये लेकिन तब तक दादी लंगड़ाती हुई बीच में आ गयी और बोलीं-
"का बात है गोदावरी ...? काहे बिल्लवाये हौ...?"
बस उसी दिन से हमारे मन में गऊ माता के लिए अपार श्रद्धा हो गयी...क्योंकि हमसे लिपटी हुई वो "ख़ास मेहमाननी" जब तक हमसे दूर हुई तब तक तो हम भाव बिभोर हो चुके थे..! जब उनका विवाह हुआ तो हमने उनकी बिदाई के समय उनके कान में कहा भी-
"ससुराल में गऊ माता को प्रणाम करना न भूलना"
यह सुनकर वो फिर उसी तरह हमसे लिपट कर रोने लगीं ...जैसा उस दिन लिपट गयी थी। सचमुच गऊ माता की जय कहने वाले का जीवन सफल होता है
..हमारे साथ आप भी कहिये ना-
"गऊमाता की जय...!"