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सफर-ऐ-जिंदगी-१

1 फरवरी 2016

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मेरी छोटी बहिन की पुत्री आयु0 पूर्तिश्री के विगत जन्मोत्सव के अवसर पर मेरे माता तथा पिता आयु0 पूर्तिश्री को आर्शिवाद देने के लिये उपस्थित थे। बच्चों के द्वारा केक काटने की जिद और संस्कारो की सामान्य रूढियों के सामंजस्य के अनुरूप केक भी लाया गया और पिताजी तथा मांजी के द्वारा आयु0 पूर्तिश्री को रोली अक्षत का तिलक लगाकर केक काटते हुये अपना जन्मदिवस मनाये जाने की तैयारी की गयी।
मांजी तथा पिताजी द्वारा जैसे ही पूर्तिश्री के माथे पर रोली और अक्षत का तिलका लगाकर केक काटने की रस्म के लिये स्वतंत्र किया गया मुझे थोडी सी शैतानी सूझी । मै लपककर पूर्ति और केक के बीच आ गया और बोला:- 


अरे मांजी यह क्या ! बर्थडे तो मेरा था आपने पूर्ति को टीका क्यों लगाया । मुझे भी टीका लगाइये।’
यह कहकर मैने अपना माथा मांकी ओर झुका दिया । मां ने प्रेम से मेरे माथे पर भी रोली और अक्षत का तिलक लगा दिया । अब मै फिर बोला:- 
'अरे पिताजी आपने तो टीका लगाया ही नहीं । आप भी लगाइये ना !’
पिताजी ने भी अक्षत और रोली का टीका मेरे माथे पर लगा दिया । स्वाभाविक रूप से इतने अतिरिक्त कार्यक्रम के बाद ही पूर्ति श्री के बर्थ डे का केक काटा जा सका था। इसके बाद जन्मदिन के सामान्य कार्यक्रम सम्पन्न हुये और हम लोग अपने अपने घर लौट आये। 
यहां यह घटना घटित होकर सामान्यतः भुलादी जाती परन्तु विगत फरवरी ने इस घटना को कभी न भूलने वाली घटना बना दिया। हुआ यूं कि 3 फरवरी को भारत पाकिस्तान के मध्य हुये क्रिकेट मैच को आखिरी क्षणों तक देखते हुये भारत की विजय को उन्होंने रसगुल्लों के साथ सेलिब्रेट करने के बाद वे अपने शयन कक्ष में दाखिल हुये। रात्रि के दूसरे पहर लगभग 2.30 बजे सीने में असहजता की शिकायत के बाद जैसे ही उन्हें मेडिकल सुविधाओं तक पहुंचाया गया तब तक वे अपनी ऐसी यात्रा के लिये तैयार हो चुके थे जहां से कोई वापिस नहीं लौटता यह प्रातः 3.30 बजे का अवसर रहा होगा।
आज जब वे हमारे बीच नहीं है तो आयु0 पूर्तिश्री के विगत जन्मोत्सव पर मेरे माथे पर लगाया गया अक्षत रोली का उनका टीका उनका वह आर्शिवाद है जो अनमोल है और जिसकी पुनरावृति अब कभी न हो सकेगी।

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ashokshukla
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