यूँही बारिश में कई नाम लिखे थे ,
अपने हाथों से कई पैगाम लिखे थे
अब तक जमी हैं वो यादों की बुँदे ,
जिनके आगोश में , सुबह शाम लिखे थे ,
आज तनहा हूँ मै तो ये सोचता हूँ ,
अपने अकेलेपन से यही पूंछता हूँ ,
कहाँ हे वो जिसकी खातिर हमने ,
जमाने के कई गुलफाम लिखे थे .
जिंदगी की तो मगर ये कहानी पुरानी है ,
कल कोई और था इसके पैमाने पर ,
आज "अनुपम " की ये कहानी है ,
कोई लाख भुलाए पर केसे भूलेगा ,
जिसे देखकर मोहब्बत के इम्तिहान लिखे थे .
यूँही बारिश में कई नाम लिखे थे...........