ज़िन्दगी कुछ ही दिनों की मेहमान होती है
हर इंसान की आखिरी मंज़िल श्मशान होती है
परिंदो के परो को क्यों मिसाल दी जाती है
जबकि परो से नहीं हौंसलो से उड़ान होती है
मेरे सपनो का हिन्दोस्तान है कुछ ऐसा की
जहाँ इंसानियत सबका धर्म सबकी शान होती है
ना जाने क्यू लोग धर्म बनाते है बांटने के लिए
जबकि धरती सबके लिए एक सामान होती है
लम्बी उम्र जीकर क्या करोगे जनाब 'बेखुद' जबकि
यशस्वी जीवन ही शख्सियत की पहचान होती है
महेश कुमार बोस 'बेखुद'