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हाँ मत करो बात मुझसे

1 नवम्बर 2018

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हाँ मत करो बात मुझसे
तुम्हारी मर्जी।
अपनो को क्या देना पडे
बार-बार माफी की अर्जी।
हाँ मानता हूं मैं हो जाती है गलतिया अक्सर
इंसान है हम खुदा तो नहीं।
जरा सी बात पर इतने दिन तक रूठे रहना
ऐसी भी क्या हो खुदगर्जी।
हाँ मत करो बात मुझसे
तुम्हारी मर्जी।

एक पल में ही भूल गए
तुम वो सारी बातें
वो कसमे-वादे
वो सब मुलाकाते।
तुमको क्या है
तुम्हारे लिए तो है
ये सारी बातें फर्जी
करलो तुम भी जितनी
करनी है तुमको मनमर्जी
हाँ मत करो बात मुझसे
तुम्हारी मर्जी।

बार-बार तुम रुठो
बार-बार मैं मनाता रहू
अब कितनी बार मैं
ये किस्सा दोहराता रहू।
सुनो अगर मैं रूठ गया ना
तो तुम लिखते ही रह जाओगे अर्जी।
बहुत हो गयी तुम्हारी मनमर्जी,
अब देखना तुम भी मेरी खुदगर्जी।
हाँ मत करो बात मुझसे
तुम्हारी मर्जी।

महेश कुमार बोस ‘बेख़ुद’

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आँखो से बात करे

27 सितम्बर 2018
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आओ अब कुछ बात करे

27 सितम्बर 2018
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आओ अब कुछ बात करे,कदम कुछ अब साथ भरे।भुला के सारे गिले शिकवे,नये रिश्ते की शुरुआत करे।पहले ही बहुत कम है जिंदगी,फिर रुठ के क्यो वक्त बरबाद करे।बंजर हो गया था जो पतझड़ के आने से,उस गुलशन को प्यार से फिर आबाद करे।भुल गया हूं मै तुम भी भुला दो,बीती जिंदगी को क्यों हम याद करे।आओ अब कुछ बात करे,कदम अब कु

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आज देर रात तक

9 अक्टूबर 2018
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आज देर रात तक तेरे गुड नाईट के इंतजार में जागता रहा,मूंदी नम आंखो से मोबाइल की स्क्रीन को ताकता रहा।ये कहकर कि सो गया होगा तू मनाया मैने मेरे मन को,मन मुझसे दूर और मैं मन से दूर सारी रात भागता रहा।कोई खता अगर हुयी हो तो बता देता मुझको मेरे दोस्त,मैं रात भर चाँद से तुझको मनाने की भीख माँगता रहा।लडते

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खुद में खोकर खुद को पाना

10 अक्टूबर 2018
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खुद में खोकर खुद को पाना काम ज़रा सा भारी हैं जिन नज़रो में देखी है हमनेसूरत अपनी वह नज़र तुम्हारी हैसारे ग़मो को हर देती है जो पल मेंकुछ ऐसी मुस्कान तुम्हारी है आँख मेरी लगने ही नहीं देती यादे तेरीक्या मेरी नींद भी अब तुम्हारी हैतुझको ही सोचू और तुझको ही

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ज़िन्दगी कुछ ही दिनों की मेहमान होती है

24 अक्टूबर 2018
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ज़िन्दगी कुछ ही दिनों की मेहमान होती हैहर इंसान की आखिरी मंज़िल श्मशान होती है परिंदो के परो को क्यों मिसाल दी जाती है जबकि परो से नहीं हौंसलो से उड़ान होती है मेरे सपनो का हिन्दोस्तान है कुछ ऐसा की जहाँ इंसानियत सबका धर्म सबकी शान होती है ना जाने क्यू लोग धर्म बनाते है बांटने के

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हाँ मत करो बात मुझसे

1 नवम्बर 2018
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हाँ मत करो बात मुझसेतुम्हारी मर्जी।अपनो को क्या देना पडेबार-बार माफी की अर्जी।हाँ मानता हूं मैं हो जाती है गलतिया अक्सरइंसान है हम खुदा तो नहीं।जरा सी बात पर इतने दिन तक रूठे रहनाऐसी भी क्या हो खुदगर्जी।हाँ मत करो बात मुझसेतुम्हारी मर्जी।एक पल में ही भूल गएतुम वो सारी बातेंवो कसमे-वादेवो सब मुलाकाते

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28 नवम्बर 2018
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ये सुनहरी शाम और ये जाती हुयी सूरज की धूप,कितना खूबसूरत लगता है प्रकृति का ये अनमोल रूप।ये हवा की हसीन अदायें,कितनी जंचती हैं ये वादियों पे फिजायेंये कुदरत का नजारा मन मोह लेता हैराह चलते मुसाफिर के कदम,निहारने के लिए रोक लेता है।ये सूरज भी ना कितना इंतजार करवाता है,मगर जब अपने घर वापस जाता है।इस सु

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फिर आज तुम्हारी याद आयी

2 जनवरी 2019
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