हाँ मत करो बात मुझसे
तुम्हारी मर्जी।
अपनो को क्या देना पडे
बार-बार माफी की अर्जी।
हाँ मानता हूं मैं हो जाती है गलतिया अक्सर
इंसान है हम खुदा तो नहीं।
जरा सी बात पर इतने दिन तक रूठे रहना
ऐसी भी क्या हो खुदगर्जी।
हाँ मत करो बात मुझसे
तुम्हारी मर्जी।
एक पल में ही भूल गए
तुम वो सारी बातें
वो कसमे-वादे
वो सब मुलाकाते।
तुमको क्या है
तुम्हारे लिए तो है
ये सारी बातें फर्जी
करलो तुम भी जितनी
करनी है तुमको मनमर्जी
हाँ मत करो बात मुझसे
तुम्हारी मर्जी।
बार-बार तुम रुठो
बार-बार मैं मनाता रहू
अब कितनी बार मैं
ये किस्सा दोहराता रहू।
सुनो अगर मैं रूठ गया ना
तो तुम लिखते ही रह जाओगे अर्जी।
बहुत हो गयी तुम्हारी मनमर्जी,
अब देखना तुम भी मेरी खुदगर्जी।
हाँ मत करो बात मुझसे
तुम्हारी मर्जी।
महेश कुमार बोस ‘बेख़ुद’