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"चौपाई"

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"चौपाई"ऋतु वर्षा की रुख पुरुवाई बहुत जोर बरसी असमाईकहीं गरजी कतहुँ बरसाई कहीं उफन कर नाव डुबाई।।हा हा कार मचाई बदरी भिगा डुबा गइ ऊँच निच बखरी मानों छलकी माथे गगरी तहस नहस भय डूबी नगरी।।आफत आई बैठ बिठाए पानी पोखर ताल भराएरात दिवस अरु साँझ डराए कहाँ भवन कहँ रैन बिताए।

"दोहा" मुरलीधर मनमोहना, आओ मेरे गाँव झूला झूले गोरियाँ, डाल कदम की छाँव।। "चौपाई" श्याम सखा मधुबन चित पाँती, चातक चाह नैन छलकाती विरह वदन हिय नाहि सुहाती, कत धुन मुरली मन मलकाती।। गोकुल गैया श्याम चकोरी, कह पति राधा कस गति गोरी कह हठ ग्वालन की बरजोरी, कह मुख माखन ल

"चौपाई" चिड़िया चहके अपनी डाली, कोयल बोली गीत निराली बगुला भगत करे रखवाली, आ री मछली अपनी थाली भर चुनाव में गगरी खाली, खोट न जाए अबकी आली घर से बोल रही घरवाली, फेंको पैसा ठोको ताली।। महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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