"चौपाई"
ऋतु वर्षा की रुख पुरुवाई बहुत जोर बरसी असमाई
कहीं गरजी कतहुँ बरसाई कहीं उफन कर नाव डुबाई।।
हा हा कार मचाई बदरी भिगा डुबा गइ ऊँच निच बखरी
मानों छलकी माथे गगरी तहस नहस भय डूबी नगरी।।
आफत आई बैठ बिठाए पानी पोखर ताल भराए
रात दिवस अरु साँझ डराए कहाँ भवन कहँ रैन बिताए।।
नदियाँ सगरी बाढ़े बैरी माघे ठारे जेठे खैरी
घाट पाट मानों चह गैरी डूबे जैसे मछली तैरी।।
डाल टूटते उड़े पखेरू हरे खेत जस घुसे अनेरू
कहाँ गए बह चितवन हेरू कहाँ याद कित चाह घनेरू।।
बाढ़ बहुत उत्पात बढ़ाए बिना समय के नींद उड़ाए
जल ही जीवन जान डुबाए जल बिनु कौन जीव जी जाए।।
'गौतम' यही प्रकृति पियारी फूल फुलाए आस कियारी
जल की मीन जलहिं अनुसारी आए बाहर होय दुखारी।।
महातम मिश्र 'गौतम' गोरखपुरी